नवयुग का अरुणोदय-विभीषिकाओं के गर्भ से

April 1991

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युग परिवर्तन की सन्धिवेला का यह अंतिम दशक है। इसमें पुराने और नये युग का संघर्ष होगा। अधोगामी प्रवृत्तियाँ अपना पसारा समेटेंगी और श्रेष्ठ विचारधाराओं का तीव्रगामी प्रवाह प्रचण्ड तूफान बनकर जन-जन को अपनी चपेट में लेगा। इस बीच संसार को अनेकों प्रकार के महापरिवर्तनों से होकर गुजरना पड़ेगा। युगपरिवर्तन की प्रसव पीड़ा प्रकृति में स्पष्ट दिखाई देगी। उज्ज्वल भविष्य की प्रबल संभावना होते हुए भी भयंकर उथल-पुथल होगी। गलाई-ढलाई का उपक्रम भी इन्हीं दिनों द्रुतगति से प्रकृति के गर्भ में चलेगा। प्रसूता के बाह्य लक्षण भी दिखाई देते हैं और उसे असह्य प्रसव वेदना भी होती है, पर यह एक सर्वविदित तथ्य भी है कि उन्हीं पीड़ाओं के बीच से नवागन्तुक सुकोमल शिशु की प्रसन्नतादायी सुखद संभावना भी जुड़ी रहती है। इन दिनों कुछ इसी प्रकार का नियति क्रम चल रहा है।

महाभारतकार ने जहाँ एक ओर इस युगान्तरकारी महापरिवर्तन का वर्णन करते हुए कहा है कि युग परिवर्तन के समय संसार में तीव्र संघर्ष और भयानक हलचलों का दौर उठता है। यथा-”ततस्तुमुल संघाते वर्तमाने युग क्षये” अर्थात् वर्तमान युग का क्षय समापन होते समय बड़ी हलचल तथा संघर्ष की स्थिति उत्पन्न हो जायेगी, वहाँ यह भी सुस्पष्ट लिखा है-

“द्विजातिपूर्वको लोकः क्रमेण प्रभविष्यति।

दैवः कालन्तरेऽन्यस्मिन्युनर्लोक विवृद्वये॥”

अर्थात् - युग परिवर्तन का सन्धिकाल आरंभ हो जाने पर क्रम से द्विजाति-संस्कार सम्पन्न लोगों का, ब्राह्मणत्व का अभ्युदय होगा और तब भगवान मानव समाज को वृद्धि और उन्नति की ओर अग्रसर करेंगे। ज्योतिषशास्त्र के अनुसार कलियुग के बीच सतयुग का मध्यान्तर इन्हीं दिनों आरंभ होने जा रहा है। ग्रह गणित के अनुसार भी यह समय युगपरिवर्तन का बैठता है। इसमें असुरता हारेगी और दैवी विभूतियाँ जीतती चली जायेंगी।

इस संदर्भ में जिनकी अप्रत्याशित भविष्यवाणियाँ प्रायः सिद्ध होती रही हैं, ऐसे अपने समय के दिव्यदर्शियों में जूलवर्न, जीन डिक्शन, प्रो. हरार, कीरो, नोस्ट्राडेमस आदि के नाम विश्व विख्यात हैं। उनकी भविष्यवाणियों का सार संक्षेप यह है।

“सारे संसार में युग सन्धि के दिनों में व्यापक उथल-पुथल होगी। यह समय व्यापक तनाव और शीत युद्ध तथा गृहयुद्धों का है। विश्वयुद्ध की प्रबल संभावना है। उसके कारण फैली महामारियों एवं प्रकृति-विग्रहों से करोड़ों लोगों की जान जाने का भय है। प्रकृति प्रकोप उभरेंगे। अतिवृष्टि, अनावृष्टि, मौसम का असंतुलन, हिमपात, भूकंप समुद्री तूफान जैसी विपत्तियों की संभावना है। साथ ही साथ इन समस्त विभीषिकाओं के गर्भ से ही एक नये युग का अभ्युदय भी सुनिश्चित है।”

सामयिक परिस्थितियों पर सही भविष्यवाणियाँ करने में अन्तर्राष्ट्रीय ख्याति की सूक्ष्मदर्शी महिला आयरीन ह्यजेज का नाम इन दिनों सभी की जबान पर है। वे अदृश्य में चल रही हलचलों को अभी दिव्य दृष्टि से देखतीं और उस आधार पर अगले दिनों घटित होने वाली संभावना व्यक्त करती हैं। उनने अपने एक वक्तव्य में कहा है - तृतीय विश्व युद्ध के रोमाँचकारी हृदयविदारक दृश्य मेरी आँखें चल चित्र की तरह देखती हैं। यह दुर्घटना अब से लेकर सन् 2000 के बीच कभी भी घटित हो सकती है। किन्तु साथ ही मैं यह भी देखती हूँ कि उत्तर भारत में एक ऐसे आध्यात्मिक सूर्य का उदय हो रहा है जो इन विकट संभावनाओं को निरस्त कर सकने वाला तेजस्वी वातावरण बना रहा है।

ठीक इसी से मिलती जुलती कनाडा की एक अन्य दिव्यदर्शी और सही भविष्य कथन के संबंध में सुप्रसिद्ध महिला माल्या डी का कथन भी बहुत विश्वस्त माना जाता रहा है। उनने अपने एक भविष्य कथन में कहा है कि इस सदी के अन्तिम दशक में विशेषकर सन् 1991 और 98 के मध्य विश्व भर में भयंकर उथल-पुथल होगी। उसमें जहाँ जन समुदाय को अतीव कष्ट सहने होंगे, वहाँ एक संभावना यह भी है कि इस विनाशलीला को उलट सकने वाली एक प्रचंड आध्यात्मिक आँधी चल पड़े। ऐसे तूफान का उद्गम मुझे भारत के हिमालय क्षेत्र से होता दीख रहा है।

मिश्र के प्राचीन पिरामिड पर भविष्यवाणी अंकित है। जिसमें इन दिनों युग बदलने, बुरा समय जाने और नया जमाना आने का उल्लेख है। इन पिरामिडों में अंकित भविष्यवाणियों को सबसे पहले डेविड डेविडसन नामक एक खगोल विज्ञानी ने अनूदित किया और “द ग्रेट पिरामिड-इट्स डिवाइन मेसेज” नामक पुस्तक में प्रकाशित किया। उसके अनुसार उसमें पाँच हजार वर्ष पूर्व पिरामिडों के निर्माण से लेकर अब तक के इतिहास और आगे की भविष्यवाणियाँ अंकित हैं। सिकन्दर का उदय, ईसा का जन्म और उनका क्रूस पर चढ़ाया जाना, पैगम्बर मोहम्मद का जन्म, तेरहवीं शताब्दी में क्रूरता के प्रतीक चंगेज खाँ, 19 वीं सदी में नैपोलियन तथा इस सदी में हिटलर के उत्थान-पतन आदि के सुविस्तृत भविष्य कथन, जो उन दीवारों पर खुदे हुए हैं, अब तक सही उतरे हैं। दोनों महायुद्धों, भारत की स्वतंत्रता, बांग्लादेश का उदय, ईरान-ईराक युद्ध के अतिरिक्त इस शताब्दी के अन्तिम दशक में होने वाली विश्वव्यापी हलचलों क्रान्तिकारी परिवर्तनों की भविष्यवाणियाँ भी पिरामिड की मीनार पर लिखी हुई हैं।

उसके अनुसार- सन् 1990 से 2000 के मध्य तीसरे विश्वयुद्ध की पूरी-पूरी संभावना है जिसमें दुनिया के लगभग सभी देश भाग लेंगे। युद्ध में भयानक मारक आयुधों को प्रयुक्त किया जायगा। इस संहार लीला से मात्र कुछ ही व्यक्ति बचेंगे जो नवयुग का सरंजाम जुटायेंगे। नया युग “रूहानी” अर्थात् आध्यात्मिक युग होगा और इसका नेतृत्व एक ऐसे तपः पूत आध्यात्मिक व्यक्तित्व द्वारा किया जायगा जो जीवन भर इसका ढाँचा तैयार करने तथा पृष्ठभूमि बनाने में लगा रहा है। यह विश्वव्यापी परिवर्तन सन् 1999 तक पूर्ण हो जायगा।

“सेंचुरीज” नाम से विख्यात नोस्ट्राडेमस की भविष्यवाणियों ने पूरे विश्व के प्रबुद्ध समाज के चिन्तन को झकझोरा है। कितने ही अनुसंधानकर्ताओं, लेखकों ने अपनी-अपनी भाषा में इसके अनुवाद प्रकाशित किये हैं। दि फाण्ट ब्रूनो नामक एक फ्रेंच लेखक की- “नोस्ट्राडेमस : हिस्टोरियन एण्ड प्रोफेट” नामक अनूदित पुस्तक सर्वाधिक प्रामाणिक मानी जाती है। इसके अनुसार लेटिन, इटेलियन, ग्रीक एवं पुराने फ्रेंच में लिखी गयी ये भविष्यवाणियाँ अब तक दो तिहाई इतिहास की कसौटी पर खरी उतरी हैं। इस सदी के अन्तिम दशक के सम्बन्ध में उसका कथन है- सन् 1990 से 2000 के मध्य एक जलता हुआ विशाल आग का गोला अंतरिक्ष से हिन्दमहासागर में गिरेगा। इससे जो ज्वार-भाटे आयेंगे, समुद्र में ऊँची तूफानी लहरें उठेंगी, वे सारे दक्षिण एशिया-आस्ट्रेलिया को पूरी तरह डूबो देंगी।

अमेरिका एवं सोवियत रूस में पारस्परिक आर्थिक एवं आयुध निर्माण सम्बन्धी समझौता होकर उनकी विचारधारा का एकीकरण हो जायगा। खाड़ी क्षेत्र का एक अरेबियन शासक अपनी सनक से समूचे विश्व को आणविक, रासायनिक एवं जीवाणु विश्वयुद्ध में झोंक देगा, जिसका प्रारंभ मध्यपूर्व के बढ़ते तनाव से 1990-91 के आसपास होगा। इसके फलस्वरूप सारा योरोप इस युद्ध की कर्म भूमि बनकर विनष्टप्राय हो जायगा। जो शेष बचेंगे वे 1999 के बाद मानव जाति का नूतन इतिहास रचायेंगे।

बाइबिल में तृतीय विश्व युद्ध को आर्मेगेडान नाम दिया गया है। ओल्ड टेस्टामेण्ट में इसका सुविस्तृत वर्णन है। इस संदर्भ में महात्मा जॉन ने महायुद्ध के अतिरिक्त प्राकृतिक विपदाओं और परिस्थितिजन्य महाविनाश की विभीषिकाओं का भी संकेत किया है। इसी प्राचीन ग्रन्थ में सात वर्षों तक चलने वाले विश्वयुद्ध की भी भविष्यवाणी है। दो खण्डों में बँटा हुआ यह युद्ध कब होगा? इसका हवाला देते हुए न्यू टेस्टामेंट में कहा है कि जब येरुशलम सेनाओं से घिर जायगा, तब निश्चित ही एक महा संहारक युद्ध होगा, जिसमें एक ओर आस्तिकता प्रधान शक्तियाँ होंगी, तो दूसरी ओर विनाश पर उतारू सामर्थ्य होगा। मैथ्यू अध्याय- 24 में जहाँ इस समय को भयानक विपत्तियों से भरा बताया गया है, वहीं साथ ही यह भी कहा गया है कि देव पुरुष का अवतार होगा और सुख शान्ति का समय आयेगा।

इन दिनों विश्व का राजनीतिक आकाश मेघाच्छन्न हो रहा है। रह-रह कर बिजली की कड़क और बादलों की भयंकर गरज सुनाई दे जाती है। अगर ये बादल फट पड़े तो पृथ्वी पर छोटी-मोटी प्रलय का ही दृश्य दिखाई पड़ने लगेगा। साथ ही यह भी असंभव नहीं है कि अदृश्य सत्ता हस्तक्षेप करे और वैसा ही जनमानस बने तथा नियंता के नियत निर्धारण के अनुसार देवमानवों का एक बृहद् वर्ग आगे आये। जीवन्तों और जाग्रतों के मन-मानस में समुद्र मंथन स्तर का हृदय मंथन-विचार परिवर्तन कर वह, मरने-मारने पर उतारू लोगों को दैवी आह्वान को सुनने-समझने और विनाश की ओर बढ़े कदम पीछे मोड़ने को बाध्य कर दे। सृष्टा अपनी शस्यश्यामला धरती को नष्ट नहीं होने देगा, पर साथ ही साथ यह भी सुनिश्चित है कि परिवर्तन के गर्भ में से ही नये युग का अरुणोदय होगा।


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