विचारशीलता का गौरव

April 1991

Read Scan Version
<<   |   <  | |   >   |   >>

हाड़-माँस का पुतला दुर्बलकाय मानव प्राणी शारीरिक दृष्टि से तुच्छ और नगण्य है। मामूली जीव-जन्तु पशु-पक्षी जिस तरह का निसर्ग जीवन जीते हैं, उसी तरह जिन्दगी की लाश नर पशु भी ढोते रहते हैं। इस तरह की जिन्दगी जीने से किसी का जीवनोद्देश्य पूरा नहीं होता।

‘विचार’ ही वह शक्ति है जिसने मनुष्य को अन्य प्राणियों की तुलना में अधिक सुख सुविधाएँ उपार्जित करने में समर्थ बनाया। यह विचार का प्रथम चमत्कार है। इससे अगला चमत्कार तब प्रारंभ होता है, जब वह विचारणा की महान शक्ति, जीवन का उद्देश्य, स्वरूप और उपयोग करने की सही जानकारी प्राप्त करने में प्रवृत्त होता है। उसी मार्ग एवं प्रयास पर तत्पर होने का नाम तत्वज्ञान दर्शन, अध्यात्म, आत्मिकी है। विचार शक्ति का मूल्य और महत्व जिसे विदित हो गया, वह अपनी इस ईश्वर प्रदत्त दिव्य विभूति को परम लक्ष्य की प्राप्ति में प्रयुक्त करता है। फलस्वरूप उसका सारा जीवन बदल जाता है। प्रत्येक क्रियाकलाप उत्कृष्टता और आदर्शवादिता से ओतप्रोत बनता चला जाता है।

यही मानव जीवन का गौरव तथा आनन्द है। विचारशीलता का अवलम्बन लेकर जीने में ही मनुष्य जन्म की सार्थकता है। रोटी के लिए मरते-खपते रहना मनुष्य का नहीं तुच्छ जीव जन्तुओं की कार्य है। अच्छा हो, हम अपनी-अपनी विचारशक्ति और जिन्दगी की कीमत समझें और वह गतिविधि अपनायें जो अपने स्तर और गौरव के उपयुक्त है।


<<   |   <  | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles