मिथला के गंगाधर शास्त्री एक संस्कृत पाठशाला चलाते थे। बड़ा नियमित और सौम्य था उनका जीवन क्रम।
शास्त्री जी की एक मात्र संतान थी गोविन्द। उसे भी वे पाठशाला साथ ले जाते।
एक दिन की बीमारी से अचानक गोविन्द का देहावसान हो गया। उसका क्रिया कर्म करके शास्त्री जी नियत समय पर पाठशाला पहुँच गये और पढ़ाने के कार्य में लग गये।
विद्यार्थियों को पता चला कि गोविन्द नहीं रहा तो उनने बहुत दुःख मनाया और शास्त्री जी से कहा शोक में आज पाठशाला बंद की जाय।
शास्त्री जी ने कहा तब तो दूना शोक बढ़ जाएगा। एक लड़के ने न रहने का, दूसरा तुम लोगों की पढ़ाई में हर्ज होने का। एक विपत्ति भगवान ने ऐसी भेजी उसे तो हम टाल नहीं सकते थे। पर दूसरी क्षति बुलाने का कदम उठाने से तो रुक ही सकते हैं।