कुरूपता ने यह देखा (Kahani)

April 1991

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आसमान से गिरते अपने ओर आते हुए सितारे को देख पृथ्वी आश्चर्यचकित होकर बोली-तुम इतने उच्च स्थान पर से नीचे क्यों आ गिरे?

सितारे ने जवाब दिया-देवी। तुम मुझे अपने स्थान से काफी ऊँची दिखाई देती थीं। लम्बे समय से तुम्हें पाने के लिये मैं तपस्या कर रहा था आज वह दिन शुभ दिन आया है।

“आकाश में तो बहुत चमकीले दिखाई देते थे अब तुम ऐसे नहीं लगते?” पृथ्वी ने पूछा “यही मैं भी तुमसे जानना चाहता था, दूर से तो तुम जगमगाती हुई नजर आती थी सोचा था तुम से मिलकर मैं अपना कालापन छुड़ा लूँगा।” सितारा बोला।

आश्चर्यचकित धरती ने कहा- “सचमुच मैं तुम्हें चमकती नजर आती थी।” यह कहकर उसने अपने आपको देखा। किन्तु उसे चारों ओर अन्धकार ही नजर आया। वह उदास हो गई।

सितारे ने कहा-जब दूर से मुझे तुम जगमगाती नजर आती थी और तुम्हें मैं, तो फिर ऐसा ही क्यों न मान ले कि उजले और जगमगाते हुए हमेशा ऊँचाई पर रहते हैं। बात समझ की थी। दोनों को ही भा गई। आलिंगन पाश में बँधे हुए दोनों ही अपने चारों ओर एक दिव्य प्रकाश अनुभव कर रहे थे। अँधेरे की कलूटी कुरूपता ने यह देखा तो वहाँ से चुपचाप चल दी।


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