किनमें जागता है अतीन्द्रिय सामर्थ्य?

April 1991

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मानवी अन्तराल दिव्य विभूतियों का भण्डारगार है। चिन्तन, चरित्र एवं व्यवहार की उत्कृष्टता एवं उदात्तता ही जीवन के वे वातायन हैं जिनके माध्यम से उनका जागरण होता है और दैवी अनुदान तथा दिव्य वरदान व्यक्तित्व में उतरते, उभरते और जीवन को धन्य बना देते हैं। अतीन्द्रिय क्षमताओं का विकास इससे कम में संभव नहीं।

अमेरिका स्थित फाइवर्ग यूनिवर्सिटी इन्स्टीट्यूट फॉर ब्रोडर एरिया ऑफ साइकोलॉजी के विभागाध्यक्ष प्रख्यात मनोवैज्ञानिक एलेन वाघेन एक ऐसे ही व्यक्तित्व थे। लोग उन्हें सादा जीवन उच्च विचार की जीवंत प्रतिमा मानते थे। स्वयं के प्रति कठोरता और दूसरों के प्रति उदारता उनका जीवन आदर्श था। जीवन के प्रति इसी उच्चस्तरीय दृष्टिकोण ने उनके अन्तराल को खरे सोने की भाँति प्रखर बना दिया। बिना किसी कठोर तप-तितीक्षा एवं योगसाधना के अतीन्द्रिय क्षमताएँ विकसित हो गई। इसका प्रथम आभास उन्हें 5 अप्रैल, 1968 को हुआ जिसमें तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति के भाई राबर्ट केनेडी की हत्या कर दिये जाने के स्पष्ट दृश्य मानस पटल पर दिखाई देने लगे। इसकी सूचना उन्होंने उन तक पहुँचाई भी, पर तब लोगों ने उन पर सहज विश्वास नहीं किया और बात आई गई हो गई। पर घटना के उक्त तिथि पर घट जाने से सभी को उन पर आश्चर्य भी हुआ और विश्वास भी।

इसी प्रकार 29 अप्रैल एवं 28 मई 1968 को उनने अपने अन्तरंग मित्र एवं मूर्धन्य परामनोविज्ञानी स्टेनली क्रिपनर को एक इसी आशय का पत्र लिखा, जिसमें जान एफ केनेडी एवं मार्टिन लूथर किंग की हत्या की आशंका प्रकट की गई थी और कहा गया था कि उन्हें सावधान रहना चाहिए, पर साथ ही इस बात का भी उल्लेख किया था कि वे सतर्क नहीं रह पायेंगे और घटना घट जायेगी। कुछ ही दिनों में उनकी आशंका सत्य साबित हुई और दोनों की थोड़े-थोड़े अन्तरालों में हत्या कर दी गई।

फ्राँस में जन्में प्रसिद्ध, भविष्यवक्ता पीटर हरकौस के बारे में शायद बहुत कम लोगों को यह ज्ञात होगा, कि उनमें अतीन्द्रिय क्षमता का विकास कैसे हुआ। हुआ यों कि जब वे पढ़ाई समाप्त कर चुके तो उनके परिवार वालों की इच्छा हुई कि वह कोई अच्छी और उच्च पद पर नौकरी करके परिवार का सम्मान बढ़ायें। कई प्रस्ताव भी इस हेतु उन्हें प्राप्त हुए, पर उनकी इच्छा कुछ और थी। पद और प्रतिष्ठ के चक्कर में न पड़ कर जीविकोपार्जन के लिए उनने एक सामान्य शिक्षक की नौकरी कर ली और शेष समय में वे फ्राँस के कबाइली क्षेत्र में जाकर उनकी सेवा करते, रहन-सहन का ढंग बताते, उनके बच्चों को शिक्षा देते। इसी कारण उस क्षेत्र के लोग आदर से उन्हें संत हरकौस कह कर पुकारने लगे। अनेक वर्ष बीत गये। इसी बीच उन्हें ऐसा महसूस होने लगा, जैसे उनमें कोई विशिष्ट क्षमता विकसित हो रही हो। एक दिन उस क्षेत्र में एक घटना घट गई। किसी ने वहाँ के एक कबाइली की हत्या कर दी। उन्हें सूचना मिली, तो वे तत्काल वहाँ पहुँचे। लाश को देखते ही उनके मस्तिष्क पटल पर हत्या का सारा दृश्य घूम गया। किसने, किन परिस्थितियों में किन कारणों से उसका कत्ल किया, अनायास ही यह सब कुछ उन्हें ज्ञात हो गया। बाद में इसी आधार पर अपराधी पकड़ा गया और उसने इसे स्वीकार किया। इसी के बाद फ्राँस का गुप्तचर और पुलिस विभाग ऐसे मामलों में उनकी सेवाएँ लेने लगे। उनका कहना था कि वह मृत व्यक्ति के वस्त्र को देखकर ही सारे घटनाक्रम पर विस्तारपूर्वक प्रकाश डाल सकता है।

जिज्ञासावश एक व्यक्ति ने उनसे प्रश्न किया कि ऐसी क्षमता तो कठिन साधना के बाद ही विकसित हो पाती है, फिर आप अपने जीवन की इस अद्भुत क्षमता के लिए किसे जिम्मेदार मानते हैं? उनका सीधा और सपाट उत्तर था- अपनी विशिष्ट सेवा और सादगी युक्त जीवनक्रम को।

इस प्रकार लगभग सभी अतीन्द्रिय सामर्थ्य सम्पन्न व्यक्तियों के जीवनक्रम को देखने और परखने से जिस एक निष्कर्ष पर पहुँचना पड़ता है, वह है सादगी सच्चरित्रता और सेवापरायणता। यही जीवन के वह उपादान हैं, जो ईश्वरीय शक्ति को खींचकर अपने अन्दर प्रतिष्ठित व प्रकट होने के लिए विवश कर देते हैं। यदि ऐसा जीवन जिया जा सके, तो कोई कारण नहीं कि हम में से हर कोई विलक्षण और विशिष्ट कही जाने वाली शक्तियों के स्वामी न बन सकें।


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