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November 1970

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प्रेम एक नैसर्गिक शक्ति है जो राक्षस को देवता और मनुष्य को भगवान बना देता है।

-इंगर सोल

कुछ दिनों दोनों बहुत प्रेमपूर्वक साथ-साथ रहे। एक दूसरे को चाटते, थपथपाते, हिलते-मिलते, खाते-पीते रहे और इसी बीच एक दिन उसके मालिक को फिर बाहर जाना पड़ा। इस बार भेड़िये ने किसी से न दोस्ती की न कुछ खाया-पीया। उसी दिन से बीमार पड़ गया और प्रेम के लिये तड़प-तड़प कर अपनी इहलीला समाप्त कर दी। उसके समीपवर्ती लोगों के लिये भेड़िया उदाहरण बन गया। वे जब कभी अमानवीय कार्य करते भेड़िये की याद आती और उनके सिर लाज से झुक जाते।

बर्लिन की एक सर्कस कंपनी में एक बाघ था। नीरो उसका नाम था। इस बाघ को लीरिजग के एक चिड़िया घर से खरीदा गया था। जिन दिनों बाघ चिड़ियाघर में था उसकी मैत्री चिड़ियाघर के एक नौकर से हो गई। बाघ उस मैत्री के कारण अपने हिंसक स्वभाव तक को भूल गया।

पीछे वह क्लारा हलिपट नामक एक हिंसक जीवों की प्रशिक्षिका को सौंप दिया गया। एक दिन बाघ प्रदर्शन से लौट रहा था तभी एक व्यक्ति निहत्था आगे बढ़ा-बाघ ने उसे देखा और घेरा तोड़कर बाघ निकला। भयभीत दर्शक और सर्कस वाले इधर-उधर भागने लगे पर स्वयं क्लारा हलिपट तक यह देख कर दंग रह गई कि बाघ अपने पुराने मित्र के पास पहुँचकर उसे चाट रहा है और प्रेम जता रहा है। उस मानव-मित्र ने उसकी पीठ खूब थपथपायी, प्यार किया और कहा अब जाओ समय हो गया। बाघ चाहता तो, उसे खा जाता, भाग निकलता पर प्रेम के बंधनों में जकड़ा हुआ बेचारा बाघ अपने मित्र की बात मानने को बाध्य हो गया। लोग कहने लगे सचमुच प्रेम की ही शक्ति ऐसी है जो हिंसक को भी मृदु, शत्रु को भी मित्र और संताप से जलते हुये संसार सागर को हिमखण्ड की तरह शीतल और पवित्र कर सकती है।


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