मानव जाति-एकात्मा
चीन में उन दिनों कुछ थोड़े से शहरों को छोड़कर शेष स्थानों में विदेशियों के प्रवेश पर रोक लगा दी गई थी। कभी भूल से कोई विदेशी वहाँ पहुँच जाता तो चीनी मरने मारने को उतारू हो जाते, उसकी जान संकट में पड़ जाती।
एक बार स्वामी विवेकानन्द चीन भ्रमण पर गये। उनकी किसी गाँव के भ्रमण की इच्छा हुई। दो जर्मन पर्यटकों की भी इच्छा वहाँ का ग्राम्य जीवन देखने की थी, पर साहस के अभाव में उनकी प्रवेश की हिम्मत नहीं हो रही थी। उन्होंने यह बात स्वामी जी से कही तो स्वामी जी ने कहा-सारी मनुष्य जाति एक है हमें विश्वास है कि यदि हम सच्चे हृदय से वहाँ के लोगों से मिलने चलें तो वे लोग हमें मारने की अपेक्षा प्रेम से ही मिलेंगे।
वे जर्मन पर्यटकों को लेकर गाँव की ओर चल पड़े। दुभाषिया उसके लिये तैयार नहीं हो रहा था पर जब स्वामी जी नहीं रुके तो वह भी साथ चला तो गया पर अन्त तक उसे यही भय बना रहा कि कहीं वे लोग उन्हें मारे नहीं।
गाँव वाले विदेशियों को देखकर लाठी लेकर मारने दौड़े। स्वामी विवेकानन्द ने उनकी ओर स्नेह पूर्ण दृष्टि डालते हुए कहा- क्या आप लोग अपने भाइयों से प्रेम नहीं करते? दुभाषियों ने यही प्रश्न उनकी भाषा में ग्रामीणों से पूछा- तो वे बेचारे बड़े लज्जित हुये और लाठी फेंककर स्वामी जी के स्वागत सत्कार में जुट गये। यह देखकर जर्मन बोले-सच है यदि आप जैसा निश्चल प्रेम सारे संसार के लोगों में हो जाये तो धरती पर कहीं भी कष्ट और कलह न रह जाये।