राजा का अभिमान

November 1970

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एक राजा को अभिमान हो गया कि मैं ही सारे जग का पालन करता हूं। यह बात एक साधु को अखरी। एक दिन स्वयं उपस्थित होकर उसने पूछा- महाराज आँकड़े बतायेंगे क्या? आपके राज्य में चिड़ियों, कीड़ों-मकोड़ों, जंगली पशुओं की क्या संख्या है? सबको कितना राशन भेजते हैं? राजा से कोई उत्तर देते न बना। साथ ही जगत पालक होने का उनका अभिमान भी नष्ट हो गया।


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