आर्गेनन सूत्र 269, 270 में होम्योपैथी चिकित्सा के आविष्कारक डॉ. हैनीमैन ने बताया है कि होम्योपैथी औषधियों के निर्माण का सिद्धाँत यह है कि उनके अन्दर जो अदृश्य सूक्ष्म महाशक्ति है उसे जगाया जाये ताकि वह अदृश्य रोग शक्ति से ग्रसित जीवनी शक्ति (वायटैलिटी) को रोग मुक्त करने में सहायक हो सके।
पदार्थों के अन्दर यह जो अदृश्य सूक्ष्म शक्ति है वह उसकी चेतना और संस्कार है हम नहीं जानते पर यह सत्य है कि आज का रोग हमारे कल के मानसिक विकार का ही परिणाम होता है। रोग को औषधियाँ तब तक ठीक नहीं कर सकती, जब तक उन विकारों को नष्ट न किया जाये। औषधियाँ तेजी से तात्कालिक आराम पहुँचा सकती हैं पर उनके स्थूल गुण स्थूल रोग को ही दबा सकते हैं। दबे हुये दोष फिर नये रोगों के रूप में फूट पड़ते हैं और जब तक रोग शारीरिक कष्ट के रूप में ऊपर उभरकर न आयें तब तक मनुष्य के मन में अशाँति उत्पन्न किया करते हैं।
होम्योपैथी के डाक्टरों ने विभिन्न पदार्थों के गुणों का विभिन्न देश, जाति, वर्ण और आयु के लोगों में प्रयोग किया और उनके गुणों का अध्ययन कर उन्हें औषधि के रूप में प्रस्तुत किया। यह एक जटिल प्रणाली है तो भी उन औषधियों के निर्माण की जो विधि और प्रभाव है उससे सूक्ष्म संस्कारों की महत्ता ही प्रतिपादित होती है।
‘औरम मिटैलिकम’ एनाकार्डियम प्लैटिना, इग्नोशिया आदि औषधियाँ कई तरह के मानसिक लक्षण भेद का प्रतीक हैं उसकी सूक्ष्म और नाभिकीय शक्तियों को जागृत करने के लिये होम्योपैथी औषधि निर्माताओं को दीर्घकालीन परिश्रम करना पड़ता है।
उदाहरण के लिये ‘औरम मिटैलिकम’ बनाते समय सोने का एक टुकड़ा लेते हैं उसे अच्छी तरह सरल करके बहुत बारीक चूर्ण बना लेते हैं। चूर्ण बनाते समय उसमें दूध और शक्कर मिलाकर उसकी अच्छी तरह घोटाई की जाती है। उस विचूर्णित स्वर्ण की एक रत्ती मात्रा को 400 बूँद परिश्रत जल (डिस्टिल्ड वाटर) तथा 100 बूंदें रेक्टीमाइड अल्कोहल के साथ डालकर मिला लेते हैं यह एक शक्ति ‘पोटैंसी’ की औषधि हुई।
तीनों वस्तुओं के घोल में 1 रत्ती सोना था तब उस पूरे घोल का कुल 1 बूँद लिया उसमें स्वर्ण की मात्रा 1 रत्ती के सौ गुने से भी कम होगी उस एक बूँद में 100 बूँद अल्कोहल मिलाकर फिर हिलाते हैं। यह 2 शक्ति पोटैंसी की औषधि हुई। इसमें से एक बूँद औषधि 100 बूँद अल्कोहल लेकर फिर मिलाया यह तीन पोटैंसी हुई। इसी प्रकार औषधि की सूक्ष्म शक्ति को कई लाख पोटैंसी तक ले जाते हैं और जब वह औषधि किसी रोगी व्यक्ति को दी जाती है तो उसमें तीव्र हलचल उत्पन्न कर देती है। पिछले दोषों को उभार देती है जैसे-जैसे रोग के लक्षण उभरते रहते हैं तब तक अनुभूत औषधियाँ दी जाती रहती हैं समय तो लगता है पर उससे जीवनी शक्ति पर लगे जन्म-जन्मान्तरों के दोषों का शमन हो जाता है ऐसा हर होम्योपैथी चिकित्सा का विश्वास है।
यह चिकित्सा पद्धति हमारा ध्यान पदार्थों की सूक्ष्म सत्ता के अस्तित्व और उसकी महान महत्ता की ओर खींचती है। यदि पदार्थों और जीवनी शक्ति के सूक्ष्म अस्तित्व की बात का ज्ञान हो जाये तो मनुष्य न केवल अपने शरीर बल्कि अपने जीवन और अपनी आत्मा का भी उद्धार कर सकता है।