स्वयं कर्म करोत्यात्मा स्वयं तत्फलमश्नुते।
स्वयं भ्रमति संसारे स्वयं तस्माद्विमुच्यते॥
-चाणक्य
जीव आप ही कर्म करता, आप ही फल भोगता है, आप ही संसार से भ्रमता, आप ही उससे मुक्त होता है।
जो कर्त्तव्य कल करना है, उसे आज ही कर लेना अच्छा है। मृत्यु बड़ी निर्दयी है, वह कब आ जायेगी उसका कुछ पता नहीं
-वृहत्कल्प भाष्य 4674