भविष्य जानने की इच्छा हो तो अपना भूत देखो और उसके अनुभवों को उपयोग में लाओ, तुम जैसा चाहोगे भविष्य वैसा ही बन जायेगा।
-वर्जिल
हर ग्रह की एक स्थायी गति होती है जो किसी स्रोत की परिक्रमा के कारण होती है। पृथ्वी सूर्य की 365 1।4 दिन में एक पूर्ण परिक्रमा करती है। इस अवधि में वह न केवल सूर्य के दैनिक ताप से प्रभावित होती है वरन् सूर्य के स्थायी प्रभाव वाली 1000 किरणों से भी प्रभावित होती है। सूर्य की 10000 रश्मियों को तीन भागों में बाँटा गया है 1. अमृता या वृद्धि सर्जना की 400 (इनके भी चार खण्ड चन्दना, साध्या, कूतना, आकूतना हैं) यह किरण वर्षाकाल की हैं। 2. हिम सर्जना या चन्द्रा की 300 (इनके भी दृश्या, मेघ्या, बाह्या, ह्रादिन्यः यह चार भाग हैं)। यह शीत पैदा करती हैं 3. तीसरी प्रकार की धर्म सर्जना या शुक्ला की 300 हैं) इसके भी शुक्ला, कुहका, गावः विश्वभृतः चार भाग हैं। यह ग्रीष्मोत्पादक किरणें हैं। इस तरह सूर्य की सब किरण बारह महीनों में बंटी हुई 1 वर्ष में ऋतुओं और जलवायु को बदलती हुई पृथ्वी और उसके निवासियों को प्रभावित करती हैं। इनके साथ ग्रह की परिस्थितियाँ भी मिलकर अपना प्रभाव उत्पन्न करती हैं। उन सबकी प्रकृति की एक क्रमबद्ध शृंखला चलती और पुनरावृत्ति होती रहती है। उसे ही भविष्य फल कह सकते हैं। संभव सब कुछ है पर वह सब कठिनाई से ही मिलने वाला है। विज्ञान जटिल मशीनें बनाने के प्रयत्न में है, उससे किसे कितना लाभ मिलेगा कहा नहीं जा सकता पर आत्मानुभूति की साधना तो सबके अपने वश की बात है। हम ज्ञान के केन्द्रबिन्दु मन और मस्तिष्क को जीत पायें तो क्या विज्ञान क्या ग्रह-गणित सबसे विजय पाकर अपने आप में ही भूत और भविष्य के न केवल ज्ञान वरन् नियंत्रण की क्षमता भी प्राप्त कर सकते हैं।