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November 1970

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तमेव विद्वान विभाग मृत्योः।

-ऋग्वेद

उस आत्मा को जान लेने वाला मनुष्य मृत्यु को जीत लेता है।

आत्मा बड़ी विराट है यह ऊपर कहा गया है। उसे जानने के लिये परमाणु की तुलना और मण्डल से करनी पड़ेगी। वस्तुतः परमाणु में सूर्य और उसका विस्तार ही प्रतिभासित है। सूर्य अक्रियाशील गैसों का पुँज है। नाभिक के रूप में परमाणु में वही प्राण भरता है। इलेक्ट्रोन्स और कुछ नहीं हर तत्व में नवग्रहों का प्रभाव है। पदार्थ की रासायनिक रचना के अनुरूप वे मनुष्य को भी प्रभावित करते रहते हैं पर यह तभी तक जब तक हमारी मानसिक और बौद्धिक चेतना आत्मा की खोज नहीं करती, उसमें विलीन नहीं हो जाती। जीव रूपी इलेक्ट्रान जिस दिन नाभिक रूप आत्मा में विलीन हो जाता है उस दिन उसकी क्षमता सूर्य के समान प्रत्येक अणु में व्याप्त तेजस्वी और प्रखर हो जाती है नाभिक और सूर्य दोनों में ही 1. सर्वव्यापकता 2. अक्रियाशीलता 3. सर्वगता 4. न समाप्त होने वाला प्रकाश भरा है। उपनिषद्कार का कथन है कि यह सूर्य ही आत्मा है।

देवायं भगवान्भानुरन्तर्यामी सनातनः।

-सूर्य पुराण 1।11

अर्थात्- यह सूर्य ही अन्तर्यामी और सनातन देव है।

यन्मण्डलं सर्वगतस्य विष्णोरात्मा-

परंधाम विशुद्ध तत्वम्॥

-गायत्री तंत्र भास्कर

यह सूर्य ही सर्व वस्तुओं में व्यापक आत्मा रूप विशुद्ध तेज और तत्त्वरूप है।

परमाणु में नाभिक की उपस्थिति आत्मा के अस्तित्व और गुणों का बोधक है, जो इस विज्ञानमय स्वरूप को समझकर आत्मा को प्राप्त करने का प्रयास करता है, वह प्रकृति के प्रभाव से मुक्त होकर पूर्णता, शाँति और सनातन सत्य की उपलब्धि करता है।


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