‘अपने पुरुषार्थ से अर्जित ऐश्वर्य का ही दूसरा नाम भाग्य है।’
-डिजरायली
मूल विषय के संबंध में अब विज्ञान भी सहमत हो गया है। आकाश में दो तरह के पिण्ड पाये जाते हैं 1. जीवित 2. मृत। जीवित ग्रह वह है जो प्रकाश का उत्पादन स्वयं करते हैं। दूसरे वह जो प्रकाश के लिये दूसरों पर अवलंबित रहते हैं। पर पाये हुये प्रकाश अपनी प्रकृति को मिलाकर विकिरण का कार्य वे भी करते रहते हैं, मृत ग्रह कहलाते हैं। जीवित ग्रह-व्यक्ति की अन्तःचेतना और स्थूल प्रकृति दोनों को प्रभावित करने में समर्थ होते हैं जबकि मृत ग्रह शरीर और प्रकृति को प्रभावित करते हुये भी यदि अन्तःचेतना बलवान है तो उसे अपने सिद्धाँतों से हटा नहीं पाते हैं। ज्योतिष का यही अंश समझने योग्य है।
अपना या पृथ्वी का भूत किस प्रकार देखा जा सकता है उसकी गणना एक सेकेंड में 186200 मील की गति से पृथ्वी तक पहुँचता है। सूर्य यहाँ से 93000000 मील दूर है अर्थात् पृथ्वी पर पहली किरण का पहला कण पृथ्वी को चूमता है उसके साढ़े आठ मिनट पहले ही सूर्य हमारी पृथ्वी को देखने लगता है। अर्थात् आठ मिनट पहले के सारे दृश्य सूर्य के प्रकाश कणों को छाँटकर जाने जा सकते हैं। वैज्ञानिक इस दिशा में कोई मशीन बनाने का तेजी से परिश्रम कर रहे हैं।
चन्द्रमा, बुध, शुक्र, मंगल, बृहस्पति, शनि, राहु, केतु, तथा प्लूटो पृथ्वी से क्रमशः 253000 मील, 136900000 मील, 160900000 मील, 247000000 मील, 597000000 मील, 1023000000 मील, 1946000000 मील, 2891000000 मील, तथा 4506000000 मील दूर हैं। इनसे होकर आने वाली प्रकाश किरणें सवा सेकेंड से लेकर कुछ मिनटों या घंटों पूर्व तक के ही भूत का ज्ञान करा सकती हैं। पर सौरमण्डल के बाहर अनेक सूर्य, प्रकाश, स्रोत, और आकाश गंगायें इतनी दूर हैं कि उनका प्रकाश पृथ्वी तक पहुँचने में इतना समय लग सकता है जितनी कि पृथ्वी की आयु भी न हो। ऐसा भी है कि किसी तारे की किरण उस दिन चली हो जिस दिन पृथ्वी चूर-चूर होकर इस अनन्त आकाश में ऐसे समा जाये जैसे समुद्र के जल में पानी की एक बूँद।
जितनी अधिक दूरी होती है, भूत और भविष्य की जानकारियाँ भी उतनी ही अधिक स्पष्ट होती हैं। उदाहरण के लिये हम जमीन में बैठे हों और आस-पास देख रहे हों तो कुल 4-6-10 व्यक्ति अधिक से अधिक 4 फर्लांग तक आते जाते लोग, थोड़े से पेड़-पौधे, चिड़िया, तारागण ही दिखाई देंगे तो यह दूरियाँ और अधिक बढ़ी हुई प्रतीत होंगी। इसी प्रकार यदि आकाश से वायुयान से गुजर रहे हों तो काल और स्थान की दूरियाँ और भी सिमटी हुई प्रतीत होंगी। यही स्थिति इन दूर के ग्रह-नक्षत्रों के बारे में है। जो जितना अधिक दूर है वह उतने ही अधिक भूत का ज्ञान लिये है ऐसा मानना चाहिये। हमारे सौरमण्डल के आगे के सौरमण्डल का सबसे समीपवर्ती तारा ‘प्राक्सिमा सेन्टारी’ पृथ्वी से 25 करोड़ खरब मील की दूरी पर है। उसका प्रकाश यहाँ 4.2 वर्ष में पहुँचता है यदि दूरबीन से देखें तो यह तारा हमें पृथ्वी के 4.2 वर्ष का इतिहास बता रहा होगा। ‘बैटलगैज’ नामक तारे का प्रकाश 520 और डेनेब का प्रकाश 1000 वर्ष में पृथ्वी तक पहुँचता है। यदि 1085 वर्ष पहले का इतिहास पढ़ना हो तो एक ऐसी मशीन बनानी पड़ेगी जो ‘पोलारिस’ तारे को देख सके और उसके प्रकाश कणों में से दृश्यों को छाँटकर उन्हें चित्र पट दिखा सके। इसी के आस-पास कोई ऐसा तारा होगा जो 2000 वर्ष पूर्व हुये महाभारत युद्ध और कृष्णार्जुन संवाद की सारी गीता को अपने में छिपाये बैठा होगा। अपना सूर्य ‘स्पाइरल’ नामक आकाश गंगा से प्रकाश लेता है उनके पास की दूरी आकाश गंगा ‘एड्रोमीडा’ पृथ्वी से इतनी दूर है कि उसका प्रकाश पृथ्वी तक आने में ‘बीस करोड़’ वर्ष ले लेगा अर्थात् 200000000 वर्ष पहले की सारी जानकारियाँ ‘एड्रोमीडा’ दे सकती है।