न्यूगिनी के लोगों का भोजन बहुत सामान्य होता है। ऐसा नहीं कि अच्छे स्वास्थ्य के लिये पौष्टिक आहार, अण्डा, मछली, विटामिन्स, फल, मेवे आदि जुटाते हों, वे साधारण प्रोटीन वाला ही भोजन लेते हैं। तो भी उनका स्वास्थ्य इतना अच्छा और देह इतनी सबल होती है कि अच्छे और सन्तुलित भोजन वाले लोग भी उनका मुकाबला न कर सकें।
यह विसंगति बहुत दिन तक वैज्ञानिकों और डाक्टरों को चक्कर में डाले रही। महीनों कुछ न खाने वाले ‘पवहारी बाबा’ और बंगाल की गिरिबाला की बात होती तो संभवतः वैज्ञानिक कोई कारण ढूंढ़ निकालने में असमर्थ रहते पर यह लोग तो योगी भी नहीं थे इसलिये कारण ढूंढ़ने में दिक्कत न हुई।
अभी 3 वर्ष पूर्व आस्ट्रेलिया के वैज्ञानिक तथा आस्ट्रेलिया सरकार के स्वास्थ्य विभाग में शरीर रचना संस्था में प्रेरणा विज्ञान शास्त्री डॉ. एबेन हिपस्ले ने न्यूगिनी वासियों के आहार, रक्त, मल-मूत्र आदि की निरन्तर जाँच के बाद पाया कि सामान्य भोजन में प्राप्त प्रोटीन से अतिरिक्त प्रोटीन की मात्रा वे सीधे हवा से ग्रहण करते हैं उन्होंने वायु से आहार का भंडार प्राप्त कर लेने का एक तरीका भी निकाल लिया है। संभव है उनकी शोध बढ़ती हुई जनसंख्या को भूख की पीड़ा से बचा ले और उन्हें मरने न दे पर इससे भी बड़ी उपलब्धि यह है कि मनुष्य जीवन परमात्मा ने केवल उदर पोषण की समस्या में पड़े रहने के लिये नहीं बनाया। शरीर के लिये आवश्यक सामग्री तो उसने वायु में पहले से ही जुटा दी है उसका उद्देश्य तो कुछ और ही है जिसे शास्त्रकार यों स्पष्ट करते हैं-
ऊँ आपो ह यहृहत वश्वमायन् गर्भ दधाना जनयन्तीरग्निम् ततो देवानाँ समर्क्ततासुरेकः कस्मैदेवाय हविषा विधेम॥
-यजुर्वेद 27।25
अर्थात्-हे मनुष्यों! जो स्थूल पञ्च तत्व दीख पड़ रहे हैं वह प्रकृति की सूक्ष्म तन्मात्राओं से उत्पन्न हुये हैं यह जो वायु है उसने सूत्र रूप से उन सबको अपने भीतर धारण किया है। योगाभ्यास द्वारा इस वायु को धारण करो, और अपनी वृद्धि करते हुये परमात्मा को जानो।
अभी तक योगाभ्यास और प्राणायाम के उन विधानों को जो वायु से शरीर, मन, बुद्धि और आत्मा के विकास के लिये सूक्ष्म शक्तियाँ खींचते हैं, केवल उपेक्षणीय कर्मकाण्ड माना जाता रहा है पर डॉ. हिस्पले की शोध ने उन्हें वैज्ञानिक उपलब्धियों के समकक्ष ही नहीं श्रेष्ठतर स्थिति में लाकर प्रतिष्ठित कर दिया है। उनका कथन है-वायु में ऐसे सूक्ष्मतम जीवाणु हैं जो लंबी साँसें खींचने के समय शरीर में रह जाते हैं और हवा से नाइट्रोजन खींचकर उसे शरीर के अन्दर ही प्रोटीन में बदल देते हैं। न्यूगिनी में उन्होंने ऐसे जीवाणुओं की शोध की है। उनका कहना है कि हम बड़ी मात्रा में वायु खींचते और बेकार बाहर निकालते रहते हैं वह खनिज का भण्डार है उससे जितने चाहें पौष्टिक तत्व ले सकते हैं।
पता नहीं वह मशीन कब बनेगी जो हवा में हल चलाकर आहार उपलब्ध करायेगी पर अब वह निश्चित अवश्य हो गया है कि प्राणायाम जैसी भारतीय योगाभ्यास की क्रिया शक्ति संचय का अद्भुत साधन है। इस शक्ति से आत्मा में उन सूक्ष्म तत्वों का अभिवर्धन किया जा सकता है जो ईश्वरीय अनुभूति में सहायक होते हैं।