Quotation

November 1970

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

संत और सज्जनों के लिये यह शरीर ही तीर्थ हैं जबकि दुराचारियों के लिये यही एक नर्क भी है।

-महात्मा गाँधी

कोई आवाज होती है, वह कान की झिल्ली जिसे ‘टैम्पैनिक मेम्ब्रेन’ कहते हैं, से टकराती है। टकराने से उसमें कम्पन (वाइब्रेशन्स) पैदा होते हैं। वह कम्पन झिल्ली के पीछे भरे तरल पदार्थ को जोकि ‘शाक आब्जर्व’ (धक्के से बरसने वाला) का काम करता है, को पार कर कान की छोटी-छोटी हड्डियों, अंकस, मेलियस, स्टेपिस को प्रभावित करता है। यहाँ से यह मस्तिष्क से निकलने वाली आठवीं नस जिसे ‘आडिटरी नर्व’ कहते हैं के द्वारा मस्तिष्क के पिछले भाग में स्थित सुनने वाले केन्द्र को समाचार पहुँचाती है। यहाँ से कम्पन ‘कारटेम्स’ पहुँचाये जाते हैं जहाँ वे याददाश्त (साइनेफेस) के रूप में परिणत हो जाते हैं। ऊपर से नीचे की दिशा में हुआ मस्तिष्क का यह टेप गायरस की पर्त में अंकित रहता है और उसे कभी भी याददाश्त के द्वारा उभारा जा सकता है।

एक साधारण ग्रामीण व्यक्ति के मस्तिष्क की याददाश्त को लिपिबद्ध किया जाये तो 10 रामायणों के बराबर पुस्तक बन जायेगी। इसमें उसकी कृषि जीव जन्तु घर परिवार आदि की ही सामान्य जानकारियाँ होंगी पर एक शहरी व्यक्ति जिसे इतिहास भूगोल नागरिक शास्त्र साइंस फिजिक्स आदि न जाने कितने विषयों का ज्ञान होता है, उसकी याददाश्त 100 रामायणों से कम न होगी। लिथूयानिया निवासी रैवी के बारे में कहा जाता है कि उसने 2000 तो पुस्तकें रटकर कंठस्थ कर ली थीं। अमरीका के हैरी नेल्सन को ‘शतरंज का जादूगर’ कहा जाता था उसकी स्मरण शक्ति इतनी प्रखर थी कि एक बार में वह 20 खिलाड़ियों से अकेले ही शतरंज खेलता रहता और विजय पाता रहता था। प्रसा (जर्मनी) के राजा का लाइब्रेरियन मैथुरिन बेसिरे की स्मरण शक्ति ऐसी अद्भुत थी कि वह एक बार सुने हुए शब्द को कभी भी कहीं भी ज्यों का त्यों दोहरा देता था। यह उदाहरण इस बात के प्रमाण हैं कि मस्तिष्क जैसा टेप रिकॉर्डर न तो आज तक मनुष्य बना पाया न आगे बना पायेगा। उसकी लंबाई 600 खरब शरीर के कोशों में स्थित ‘जीन्स’ की लंबाई के बराबर अर्थात् इतनी लंबी हो सकती है जिससे सारे ब्रह्माण्ड को नापा जा सके। ऐसा टेपरिकॉर्डर और इतना टेप जो भगवान ने मनुष्य को कुदरती दिया है एक अरब रुपये में भी नहीं बन सकता।

कोई मनुष्य साधारण खाने-पीने और इन्द्रिय सुखों में ही फंसे रहकर रोग शोक का जीवन जीने तक इस शरीर का मूल्य समझे तो उसके इस आराम को क्या कहा जा सकता है, अन्यथा शरीर का एक-एक पुर्जा बताता है कि मनुष्य सामान्य और साधारण नहीं ज्ञान बुद्धि, विवेक और अनुभूति की दृष्टि से साकार ब्रह्म ही है। आज औषधि, भाषा, लिपि, ईजीनिपीग आदि के क्षेत्र में कई तरह के संगणक (कंप्यूटर) बने हैं,जो एक क्षण में ही यहाँ से लेकर चन्द्रमा, बुध, शुक्र, दर्शन, प्लूटो, नेपच्यून तक की दिशा ‘दूरी’, गति आदि का .0000000001 तक सही और प्रामाणिक उत्तर दे देते हैं पर मनुष्य जैसी भूत और भविष्य की बातों का ज्ञान रखने वाली सामर्थ्य का संगणक आज तक नहीं बन पाया। भारतवर्ष की शकुन्तला और वरमाँट बात, कजेरा कोलावर्न उसका प्रत्यक्ष प्रमाण है। कोलावर्न जब आठ साल का था तभी उसने लंदन में 268, 336 और 125 के क्यूब रूट गुणनफल 1 सेकेंड से भी कम समय में बना दिये। एक मूवी कैमरा 1।156 सेकेंड में 1 फोटो ले सकता है। इतनी तीव्र गति का ही चमत्कार है कि फोटो भी परदे में नाचने कूदने और सूक्ष्म से सूक्ष्म हावभाव प्रदर्शित करने लगती है। मूवी कैमरे में एक लेन्स होता है जिसके छेद में से ही दृश्य जा सकता है। लेंस के पीछे लगी ‘फोटो सेन्सिटिव प्लेट में पड़ने से रासायनिक क्रिया द्वारा वस्तु का प्रतिबिंब झलक जाता है। यदि मनुष्य की आयु 50 वर्ष मानी जाये और यह माना जाये कि वह मूवी कैमरा की गति से ही कुल दिन के बारह घंटे देखता है तो भी उसके मस्तिष्क में 2॥ सेंटीमीटर लंबी घिल की 5।2&156&60&60&12&365 1।3&50=307686600000 सेंटीमीटर लंबी फिल्म होनी ही चाहिए। उसका यथार्थ मूल्य तो निकाल सकना मनुष्य के लिये कठिन ही नहीं असंभव सा लगता है।

ऋण शक्ति केवल मनुष्य शरीर के लिये ही संभव है यदि इसका भी मशीनी उपयोग हो सका होता तो एक सी

शरीर माघं खतु धर्म साधनम्!

“पुण्य परमार्थ के लिये शरीर ही सबसे पहला साधन है” ऐसा मानकर शरीर का सदुपयोग करना चाहिये। आई डी कुत्ते पर प्रशिक्षण में जो 10 हजार रुपया खर्च करना पड़ता है वह न करना पड़ता।

योगियों के हिसाब से शरीर में 72000 नाड़ियाँ हैं। डाक्टरी हिसाब से इनकी लंबाई 5 हजार फीट है। संदेश लाने (अफरेस्ट नर्वन) संदेश ले जाने (इफरेन्ट नर्वस) को दोहरी व्यवस्था के लिये शरीर में 10 हजार फुट तो केवल नसों का जाल बिछा है। एक फीट बिजली का साधारण तार 25 पैसे में आता है। आगे हिसाब से देखें तो केवल बिजली के तार बिछाने का मूल्य ढाई हजार होता है अभी शरीर जैसा जल-से यंत्र (वाटर वर्क्स), शाक आब्जर्बर, शरीर में ही औषधि निर्माण फिल्ट्रेशन, मोटर पावर्स की क्रेन जैसी मास पेशियों की शक्ति वातानुकूलित और प्रकाश दायक (एयर कंडीशन और वेन्टीलेटेड) त्वचा का मूल्य शरीर से काम करने वाले इंजीनियर, डॉक्टर और मजदूर उन सब का वेतन यह कुल जोड़ मिलाया जाये तो हर शरीर अरबों अरब रुपयों का बैठेगा। पर उस सब का मूल्य और महत्व तभी है जब मनुष्य उन क्षमताओं का यथार्थ उपयोग कर पाये। परमात्मा से इतना मूल्य और महत्व का शरीर पाकर भी यदि कोई मनुष्य मानवता को ले जाने वाले घृणित कर्म या स्वार्थ, लोभ, मोह और इंद्रियां शक्ति में डूबे हुए कर्म करके अपनी आत्मा को पतित करता है तो उसका मूल्य 27 रुपये ही मानना पड़ेगा। यह मनुष्य के अपने वश की बात है कि वह सत्ताईस रुपये वाला बेकार का जीवन जिये या अरबों रुपयों मूल्य वाला ऋषि-मनीषियों और महापुरुषों जैसा भव्य जीवन जीना ईश्वरीय देन को सार्थक करे।


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles






Warning: fopen(var/log/access.log): failed to open stream: Permission denied in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 113

Warning: fwrite() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 115

Warning: fclose() expects parameter 1 to be resource, boolean given in /opt/yajan-php/lib/11.0/php/io/file.php on line 118