विनोबा उन दिनों बड़ौदा में रहते थे। उनके निवास स्थान से कोई दो फर्लांग पर एक मन्दिर था। विनोबा प्रतिदिन मन्दिर जाते और उसमें कुछ देर बैठकर भजन गाकर लौटते। मन्दिर के समीप ही एक रईस रहा करते थे सम्पतराव गायकवाड़। उनके पास एक हाथी था। विनोबा जब भजन गाते हाथी बड़े ध्यान से उनका भजन सुनता। विनोबा भावे के मन्दिर में नियमपूर्वक जाने की तरह प्रतिदिन भजन सुनना हाथी का नियम बन गया।
एक दिन किसी काम की जल्दी थी। विनोबा मन्दिर गये, भगवान के दर्शन भी किये किन्तु रुके नहीं एक मिनट में ही बाहर आ गये। उन्हें बाहर आते देखकर हाथी चिल्लाने लगा। विनोबा को फिर मन्दिर जाना पड़ा। कुछ क्षणों के लिये वे भीतर जाकर बैठ तो गये पर फिर शीघ्र ही बिना भजन गाये लौट पड़े। हाथी फिर जोर-जोर से चिल्लाने और दुःख प्रकट करने लगा। इस बार विनोबा मन्दिर में फिर गये और पहले की तरह भजन गाया तब लौटे।
अबकी बार हाथी प्रसन्न था, विनोबा को लगा जैसे उसके अन्तःकरण से आवाज आ रही है- ‘भगवान का भजन किये बिना कोई काम शुरू नहीं करना चाहिये।’ उस दिन से वह हाथी विनोबा का गुरु हो गया।