Quotation

November 1970

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मस्तिष्क ने कहा- उदर महोदय! आप भी मूर्ख ही ठहरे! यह जो अन्न तुम्हारे पास पहुँचा है उसे रस और रक्त बनाकर दूसरे अंगों को बाँट देने से खाली हो जाओगे? पेट बोला- महाशय- ऐसा न करूं तो इस शरीर के साथ ही मेरा भी अस्तित्व नष्ट न हो जाये। नित्य नया पाने का सौभाग्य भी तो हमें देते रहने से ही मिलता है।


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