वैभव के आधार पर बड़प्पन आँकने की प्रथा इस दुनिया में है जिसके पास जितनी सम्पन्नता, शिक्षा एवं चतुरता है, उसी अनुपात से उसके बड़प्पन का मूल्य आंका जाता है। बलिष्ठता और प्रतिभा भी इसी वर्ग में आती है, जो दूसरों पर अपनी छाप छोड़ती हैं तथा धाक जमाती हैं। लोग उग्रता, आतंकवाद, दुष्टता और हानि पहुँचाने की शक्ति को देखते हुए भी डरते, मान देते हैं।
बड़प्पन के मूल्याँकन की यह सभी कसौटियाँ ओछी तथा खोटी हैं। इनके सहारे हम किसी व्यक्ति का सही मूल्याँकन नहीं कर सकते। कसौटी ही खोटी हो तो सोने और पीतल का अन्तर कैसे जाना जाय?
व्यक्तित्व की वास्तविक ऊँचाई उसकी सुसंस्कारिता के आधार पर आँकी जानी चाहिए। देखा जाना चाहिए कि किसने अपने आप में गुण, कर्म, स्वभाव के क्षेत्र में कितनी उत्कृष्टता अपनाई है और निजी चरित्र तथा दूसरों के साथ सद्व्यवहार में किस सीमा तक अपनी विशिष्टता अपनाई है।
जो अपने को जितना संयत, सज्जन और अनुशासित बना सका, वह उतना ही महान है। धर्म चिन्हों या प्रचलनों से कोई धर्मात्मा नहीं बनता। जिसने आदर्शों के प्रति अपनी निष्ठा जिस सीमा तक परिपक्व की है, वस्तुतः उसी का बड़प्पन सफल और सराहनीय है।