बुद्ध एक बार एक सेठ के आग्रह पर उसके घर भिक्षाटन के लिए गए। सेठ ने मेवों की खीर बनाई थी।
बुद्ध ने गोबर भरा कमण्डल आगे बढ़ाते हुए उसमें डाल देने के लिए कहा।
कमण्डल में जगह न थी, सो पर उसमें डालने पर खीर खाने योग्य न रहती। इस असमंजस में सेठ ने कमण्डल माँग लिया उसे धोकर लाया। तब खीर भरी और हाथ में थमा दी।
बुद्ध दरवाजे तक तो गये पर फिर रुककर खड़े हो गये।
कहने लगे- हमारे आशीर्वाद और भगवान के वरदान को आप खीर जितना मूल्यवान भी मानते हों तो उसे रखने के लिए अपनी पात्रता बना लें। गोबर जैसी मलीनता भीतर भरे रहने पर वे अनुदान आपके काम न आ सकेंगे।
सेठ की आँखें खुल गईं उसमें आशीर्वाद याचना से पूर्व अपना पात्रता विकसित करने के लिए कषाय-कल्मषों के गोबर को बाहर निकाल फेंकने का निश्चय किया।