विश्व ब्रह्माण्ड के साथ संपर्क साधना

April 1986

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बहुत दिनों से यह सिद्धान्त विज्ञान क्षेत्र में मान्यता प्राप्त करता रहा है कि प्रकाश की गति एक सेकेंड में 186000 मील है। इससे तीव्र और कोई गति नहीं। यदि ब्रह्माण्ड की यात्रा पर निकला जाय तो कहाँ कितने समय में पहुँचा जा सकेगा, इसका अनुमान इस आधार पर लगाया जाना चाहिए कि इस गति से चलने वाला कोई वाहन मिल जायगा। किन्तु मनुष्य का चिन्तन और कर्तृत्व अभी इतना विकसित नहीं हुआ कि प्रकाश की गति से अधिक चलने वाले किसी वाहन के निर्माण की कल्पना की जा सके।

दूसरा तथ्य इस संदर्भ में विचारणीय है कि ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण शक्ति उसे अपने दायरे से कितना किस प्रकार आगे बढ़ने देगी। गुरुत्वाकर्षण ग्रह के भार और विस्तार से सम्बन्धित है। पृथ्वी की गुरुत्वाकर्षण शक्ति एक सेकेंड में 1102 किलोमीटर से है। इससे अधिक तेज चाल में फेंकी जाने वाली वस्तु ही पृथ्वी की पकड़ के दायरे का उल्लंघन कर सकती है।

अन्तरिक्ष में गतिशील ग्रह गोलकों की स्थिति गुरुत्वाकर्षण के सम्बन्ध में समानता नहीं है। सूर्य का गुरुत्वाकर्षण प्रति सेकेंड 317 है। कारण कि पृथ्वी का व्यास मात्र 12700 किलोमीटर है। जब कि सूर्य का व्यास 14 लाख किलोमीटर। कितने ही ग्रह इतने भारी और विस्तृत हैं कि उनकी गुरुत्वाकर्षण सीमा लाँघने के लिए प्रकाश गति की तुलना में कहीं अधिक द्रुतगामी होना चाहिए।

ऐसे ग्रहों का अस्तित्व इस ब्रह्माण्ड में है जिनका गुरुत्वाकर्षण प्रकाश गति से अधिक है। ऐसी दशा में उनकी रोशनी उसे ग्रह की पकड़ में आ सकती है और उसे परिधि से बाहर कहीं भी दीख न पड़ेगी। चमकदार होते हुए भी वह पिण्ड अंधकारमय दृष्टिगोचर होगा। फिर भी उसकी शक्ति और सत्ता तो बनी ही रहेगी।

एक और सिद्धान्त ‘ग्रैविटेशन रिएक्शन’ का है। इस परिधि में आने वाला पिण्ड सिगनल एक्स बन जाता है। यही बहु चर्चित ‘ब्लैक होल’ है। इसका आकर्षण और विस्तार इतना अधिक होता है कि उसकी पकड़ में आ जाने पर पृथ्वी जैसे विशाल पिण्ड भी खिंचते चले जा सकते हैं और इतनी तेजी से इतनी दूर पहुँच सकते कि उसका कुछ अता-पता ही न लगे।

नवीन शोधों के अनुसार ग्रह वृद्धता को प्राप्त होने पर अपने अंग-प्रत्यंग सिकोड़ना शुरू करते हैं। सिकुड़न बढ़ने किन्तु भार कम न होने की स्थिति में एक और विचित्रता उत्पन्न हो जाती है जिससे वह जीवित होते हुए भी मृतक की श्रेणी में पहुँच जाता है। ऐसी दशा में भी ऊर्जा उसके पास बनी रहती है। वह इतनी अधिक होती है कि संसार भर की समस्त मोटर गाड़ियाँ 100 मील प्रति घण्टे की चाल से 100 अरब वर्षों तक दौड़ती रहें।

सभी ऊर्जा शक्ति की प्रतीक तो होती हैं, पर यह आवश्यक नहीं कि वह संपर्क में आने वाली वस्तु को जला ही दे। वह खींचते रहने के काम भी आ सकती है।

ब्रह्माण्ड का किसी को दौरा करना हो तो उसे प्रकाश से अधिक गति वाले वाहन बनाकर हजारों वर्ष में दूरवर्ती ग्रह गोलकों की यात्रा करने की आवश्यकता नहीं। वह इन ब्लैक होलों की आकर्षक शक्ति का सहारा लेकर थोड़े ही समय में अभीष्ट स्थान तक पहुँच सकता है।

ब्लैक होल इस अनत आकाश में अनेकों हैं। वे सीधी लाइन की तरह या खड़े डण्डे की तरह नहीं है। वरन् एक ऐसी सड़क की तरह है, जिसमें स्थान-स्थान पर चौराहे फटते हैं। उनमें मुड़कर सीधे जाने की अपेक्षा तिरछा या दायाँ-बायाँ भी जाया जा सकता है।

ब्लैक होलों में छोटी बड़ी पगडंडियां भी हैं। वे राजमार्ग की तरह साथ सीधी तो नहीं हैं, पर उनका सहारा पकड़ कर यात्री अपनी दिशा बदल सकता है और चाल में धीमापन या तीव्रता जा सकता है।

इस प्रकार लोक-लोकांतरों की यात्रा सम्भव हो सकती है। ब्लैक होने पर सवार होकर ग्रहों की गुरुत्वाकर्षण का बन्धन भी बाधक नहीं बनता और गति सम्बन्धी किसी व्यवधान के आड़े आने का भी झंझट नहीं रहता।

प्राचीन काल में अन्य लोकों के निवासी पृथ्वी पर आते रहे हैं और पृथ्वी निवासियों को अंतर्ग्रही ही नहीं अन्तर निहारिकीय यात्रा की भी सुविधा मिली है। मार्ग की दूरी, उसे पूरी करने में लगने वाली लम्बी अवधि के कारण जीवन का अधिकांश भाग यात्रा में ही व्यतीत हो जाने का खतरा भी नहीं रहता। अपना अभीष्ट काम पूरा करने में जितना समय लगाने की आवश्यकता है उसे लगाकर उतनी ही तेजी से वापस भी लौटा जा सकता है जितनी तेजी से कि पहुँचा गया था।

इस प्रकार की यात्रा में आवश्यक साधन सामग्री साथ ले जाने या वहाँ की कोई वस्तु साथ लाने में भी कठिनाई नहीं पड़ती। मात्र उसे किसी मामूली धागे से शरीर के साथ बाँधे रहना पड़ता है ताकि वह साथ चलती रहे और विलग न होने पावे।

विज्ञान ने अभी पदार्थ की शक्ति का ही पता लगाया है। उसने सम्मिश्रण विकर्षण की जो प्रतिक्रिया होती है उसे भी एक सीमा तक समझ लिया गया है। ग्रह-उपग्रह भी जो भेजे गये हैं वे सौर मण्डल के ग्रहों और चन्द्रमाओं के इर्द-गिर्द तक ही पहुँच पाये हैं। इस परिधि का उल्लंघन करने के उपरान्त वे पृथ्वी के साथ किसी सम्बन्ध सूत्र से बंधे रहते और यह आशा नहीं की जा सकती कि वे फिर वापस लौट सकेंगे।

“ब्लैक होल” अभी तो एक भय का कारण बने हुए हैं। बरमूड़ा त्रिकोण के पास उसकी एक पतली सी नोंक आती है उसकी पकड़ में जो जलयान वायुयान आ जाते हैं वे ऊपर उठते और अदृश्य हो जाते हैं। इसके बाद उनका कुछ अता-पता नहीं लगता कि वे किस दिशा में किस कारण कहाँ चले गये। उनके वापस लौटने की भी प्रतीक्षा नहीं की जा सकती क्योंकि विश्व ब्रह्माण्ड में फैले हुए ब्लैक होलों के जाल और उनसे सम्बन्धित मार्गों और पगडण्डियों का कुछ पता प्राप्त नहीं किया जा सकता है। इतना जान लेने के उपरान्त भी ज्ञातव्य लोक के बारे में यह समझना बाकी रह जाता है कि मनुष्य के जीवनयापन सम्बन्धी सुविधा वहाँ है या नहीं? विचारों का आदान-प्रदान हो सकता है या नहीं। इसके साथ ही उस संपर्क का परिणाम भी समझना है कि इतनी जोखिम उठाकर आने या जाने वाले प्राणी एक दूसरे का कुछ हित साधन कर सकते हैं या नहीं।

अन्तरिक्ष विज्ञान और उसके द्रुतगामी वाहनों के सम्बन्ध हमारा भौतिक विज्ञान या अध्यात्म विज्ञान पता लग सकेगा, उस दिन उसे विश्व ब्रह्माण्ड की अनन्त विभूतियों के साथ जुड़ने का अवसर भी मिलेगा।


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