श्री विश्वेश्वरैया दक्षिण भारत में कोलार जिले में जन्मे। पिताजी तीर्थयात्रा में ही र्स्वगवासी हो गये। 15 वर्ष की आयु के इस बालक की पढ़ाई माता तथा मामा की सहायता में चली। कुछ ट्यूशन पढ़ाकर भी कमा लेते था। इंजीनियरिंग पास कर लेने पर भी उन्हें सहायक इंजीनियर की पोस्ट मिली।
उनने भारी सूझ-बूझ का परिचय दिया। निजी समस्याओं में उलझे न रहकर उनने देश निर्माण के बड़े काम हाथ में लिये। बैंगलूर, पूना, मैसूर, बड़ौदा, हैदराबाद, ग्वालियर, इन्दौर, कोल्हापुर, सूरत, नासिक, नागपुर, धारवाड़, बीजापुर आदि अनेक शहरों की पेयजल व्यवस्था उनने सम्भाली। मैसूर विश्वविद्यालय भी उन्हीं के प्रयत्न से बना। कितने बाँध उनकी देख-रेख में बने। उनकी सचाई, लगन और श्रमशीलता देखते ही बनती थी। वे 101 वर्ष जिये उन्हें भारतरत्न की उपाधि मिली और डाकघर ने उनके नाम पर टिकट चलाये।
व्यक्तिगत गुणों की दृष्टि से उनके इतने अधिक संस्मरण हैं कि उन्हें सच्चे अर्थों में महामानव ही कहा जा सकता है।