कटक में सुभाष चन्द्र बोस के पिता वकील थे। उन्होंने अपने बेटे को बड़ा आदमी बनाने के लिये उच्च शिक्षा दिलाने की पूरी व्यवस्था की। सुभाष हिंदुस्तान से एम.ए. करके इंग्लैंड में आई.सी.एस. करने गये और ससम्मान उत्तीर्ण होकर आये। पिता उन्हें किसी ऊँची सरकरी नौकरी में लगाना चाहते थे, पर उनकी नस-नस में आध्यात्मिकता और देशभक्ति कूट-कूट कर भरी थी। उनने नौकरी करने से स्पष्ट इन्कार कर दिया और विवाह भी नहीं किया। देश को स्वतन्त्र कराने के आन्दोलन में काम करने लगे। स्वामी विवेकानंद से वे संन्यास की दीक्षा लेना चाहते थे, पर उनने आदेश दिया कि देश का काम करना संन्यास से किसी भी प्रकार से कम नहीं।
एक बार प्लेग फैला हजारों हर दिन मरने लगे। उसमें सुभाष ने रोगियों की सेवा तथा मुर्दों की अन्त्येष्टि करने में दिन-रात एक कर दिया।
वे कांग्रेस के अध्यक्ष चुने गये। पर उसमें उनका मन न लगा उनने क्रांतिकारी योजना बनाई। द्वितीय विश्व युद्ध के दिन थे। छिप कर विदेश चले गये और प्रवासी भारतीयों को संगठित करके आजाद हिन्द फौज बनाई, जिसमें अपनी सामर्थ्य भर काम किया। सुभाष की चरित्र निष्ठा, आध्यात्मिकता और देश भक्ति उच्चस्तर की थी।