महर्षि रमण (kahani)

April 1986

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अरुणाचलम् के महर्षि रमण ने भी अरविन्द जैसी रीति-नीति अपनाई। वे तनिक समर्थ होते ही आत्मबल का सम्पादन करने और उससे देश के वातावरण में पुरुषार्थ परक ऊर्जा भरने का निश्चय किया। उनने दैनिक जीवन में वे गतिविधियाँ अपनाईं, जिनके सहारे कषाय-कल्मषों का निराकरण कर सकें। इस आधार पर उनका व्यक्तित्व इतना प्रखर हो गया कि जो भी उनके सान्निध्य में आता और अपने में भारी परिवर्तन हुआ अनुभव करता। वे मौन रहते थे तथा उनकी मध्यमा, परा, पश्यन्ति वाणियाँ समूचे वातावरण में गूँजती। पशु-पक्षी तक उनके मौन सत्संग में सम्मिलित होते।

महर्षि अपने संपर्क क्षेत्र में दीन दुःखियों की सेवा करते रहते और दरिद्र नारायण को भगवान मानते। एक दिन किसी ने उनसे भगवान के दर्शन की बात कही तो वहाँ ले गये जहाँ झोंपड़ी में एक बीमार पड़ा था। वे दुःखियारों में भगवान का दर्शन करते तथा औरों को कराते थे। उनकी मूक साधना ने सहस्रों प्रचारकों से अधिक काम किया।


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