रामकृष्ण परमहंस की पत्नी शारदामणि जब अठारह वर्ष की हो गईं पिता के घर से पैदल चलकर पति के पास पहुँची।
परमहंस ने कहा- ‘देवि यदि पत्नी के रूप में तुम्हारा विलास पाने की अपेक्षा माता जैसा वात्सल्य पा सकूं? तो मैं कितना बड़भागी बनूँ?’
पत्नी ने कहा- ‘देव! मैं आपके मार्ग में कंटक बनने नहीं आई। आपका अनुग्रह ही मुझे अभीष्ट है।’
दोनों ने मिलकर दाम्पत्ति जीवन को श्रद्धा और वात्सल्य से भर दिया।