एक सधा हुआ ऊँट था। नक्कार खाने का कोई उत्सव होता तो उसकी पीठ पर नगाड़ा लाद कर चोबदार उसे बजाता हुआ चलता। ऊँट बहुत बूढ़ा हो गया। काम का न रहा तो उसे खुला छोड़ दिया गया। राजा का होने से कोई उसे मारता न था। ऊँट एक दिन बुढ़िया के सूखते हुए अनाज को खाने लगा। बुढ़िया ने सूप बजाकर भगाना चाहा। ऊँट ने कहा, “जनम भर नगाड़ों की आवाज सुनता रहा हूँ। तुम्हारे सूप से क्या डरने वाला हूँ।” बहुत सत्संगियों पर किसी की शिक्षा का असर नहीं पड़ता। आयु बीत जाने पर भी सारे जीवन भर के संस्कार छाये रहते हैं। उससे उबारने की सोचें तो जीवन को दिशा भी मिले।