स्वामी विवेकानंद जी बनारस की एक सँकरी गली से जा रहे थे। रास्ता घेरे बन्दरों का झुण्ड बैठा था। स्वामीजी डरे और भाग कर लौटने लगे। बन्दरों ने पीछा किया, कपड़े फाड़ दिये और कई जगह काट खाया। चीख-पुकार सुनकर गली का एक गृहस्थ बाहर निकला। उसने कहा, “भागो मत, सामना करो। कुछ नहीं तो घूँसा तानकर इनकी ओर बढ़ो।”
स्वामी जी ने वैसा ही किया। बन्दर ठिठके और धीरे-धीरे इधर-उधर खिसक गये। विवेकानंद ने समझा कठिनाइयों से डरना व्यर्थ है। उससे जूझने के लिए हिम्मत के सहारे आगे बढ़ना चाहिए।