स्वप्न रात्रि का भटकाव नहीं है।

April 1986

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स्वप्नों के सम्बन्ध में कुछ की मान्यता है कि रात्रि को सोते समय सूक्ष्म शरीर बाहर निकल जाता है और संसार की घटनाओं को देखकर तथा परलोक के परिचितों से मिल-जुलकर लौटता है यह यात्रा सार्थक होती है और उसके साथ भवितव्यताओं के संकेत जुड़े होते हैं।

कई इन्हें पूर्व संचित स्मृतियों तथा इच्छा कामनाओं का खेल कहते हैं। कई अंतर्मन की बाल-क्रीडा, एवं शारीरिक मानसिक स्थिति के रहस्यों का एक अनगढ़ चिट्ठा उन्हें मानते हैं।

पर देखा गया है कि अनेक स्वप्न अपनी सांकेतिक भाषा में बहुत महत्वपूर्ण जानकारियां देते हैं। ऐसे कितने ही स्वप्न प्रकरण हैं जिन्हें यथार्थता एवं सम्भावना का बोधक माना जाता है। स्वप्न वासवदत्ता और स्वप्न चित्ररेखा का कथानक जिनने पढ़ा है वे यथार्थ से कम नहीं मानते। विक्रम बेताल के पच्चीस प्रसंग भी विक्रमादित्य ने अर्ध चेतन अवस्था में ही देखे थे।

जैन पुराणों में ऐसे सार्थक स्वप्नों की विशेष रूप से चर्चा है। गाथा है कि भगवान महावीर अपने साधना काल में कुछ समय सोये तो उन्हें दस सपने दिखाई दिये। उन्होंने, एक पिशाच को उनने पछाड़ा, सफेद कोकिल देखी, रंगीन पंखों का पक्षी देखा। रत्नों की माला देखी। गायों का झुण्ड देखा। कमल सरोवर देखा। अपने को समुद्र तैरकर पार करते देखा। सूर्य देखा। पर्वत पर मेघ माला छाई देखी, और दसवें स्वप्न में सुमेरु पर्वत की चोटी देखी।

इन स्वप्नों का संकेत और फलितार्थ समझने में देर न लगी। उन्होंने अपना जीवन क्रम ठीक उसी आधार पर बना लिया और वही व्यवस्था यथावत् चलती चली गई।

इसी प्रकार सम्राट, चंद्रगुप्त ने कुछ ही दिनों के बीच सोलह आश्चर्यजनक स्वप्न देखे। उनने उन्हें ज्यों का त्यों आचार्य भद्रबाहु को कह सुनाया। आचार्य ने उनको भावी जीवन बिताने की सारी विधि-व्यवस्था बता दी। चन्द्रगुप्त ने उसे पत्थर की लकीर माना और उसी के आधार पर कार्यक्रम बनाया। उसी आधार पर वे चलते रहे और इतने सफल हुए कि उनने उन्नति के शिखर पर पहुँचकर ही दम लिया।

जैन साहित्य में स्वप्न के फलितार्थ भी हैं। उनमें उन्होंने 62 प्रकार के स्वप्नों का वर्णन किया है और उनके गुण दोष बताये हैं।

हिन्दू ज्योतिष का ही मिला-जुला हस्तरेखा विज्ञान, स्वप्न विचार और विनिर्मित है। उनमें भी इस संदर्भ में बहुत कुछ लिखा गया है।

अरिहंत चक्रवर्ती की माता ने, तीस महास्वप्न देखे और उनके गूढ़ रहस्य समझते हुए अपने पुत्र को तद्नुरूप जीवन की रूपरेखा में प्रवृत्त किया।

आचार्य भिक्षु जब अपनी माता के गर्भ में थे तभी उनने स्वप्न देखा कि जन्मा हुआ पुत्र पृथ्वी का राजा होगा। बड़े होने पर जब वे संन्यास दीक्षा लेने लगे तो पुत्र ने माता को समझाया कि संन्यासी राजाओं का भी राजा होता है। राजा का अनुशासन एक क्षेत्र तक ही सीमित होता है। पर साधु तो देश-देशांतरों में सम्मान पाता है और मरने के बाद भी जीवित रहता है। वैसा ही हुआ।

मनोविज्ञानी फ्राइड ने जहाँ स्वप्नों को अचेतन मन के साथ जोड़ते हुए उनके कारण बताये हैं वहाँ उनमें शारीरिक और मानसिक स्थिति का विश्लेषण तथा भवितव्यताओं की पूर्व जानकारी देने वाला भी बताया है। उन्होंने रंगभेद के आधार पर भी स्वप्नों की विवेचना की है।

स्वप्न संकेतों के सम्बन्ध में व्यक्ति विशेष की स्थिति में भी उनकी संगति बिठाई जा सकती है। जो जिस परिस्थिति में रह रहा है उससे उसका सुधरने या बिगड़ने का भी फलितार्थ लगाया जा सकता है। अनेक व्यक्तियों की परिस्थितियाँ एक दूसरे से सर्वथा भिन्न होती हैं। उनमें क्या हेर-फेर होने जा रहा है इसका अनुमान स्वप्न संकेतों से मिलता है। संकेतों से दिशा भर मिलती है उसका स्पष्टीकरण अपनी व्यावहारिक बुद्धि से करना पड़ता है।

आधी निद्रा तो मनुष्य की शारीरिक थकान दूर करती है। पर प्रातःकाल का ब्राह्ममुहूर्त ऐसा होता है जो कई प्रकार के उद्बोधन देता है। आध्यात्मिक प्रेरणाऐं भी प्रायः उन्हें उसी समय मिलती हैं और दिव्य स्वप्न भी उसी समय आते हैं। कितने ही वैज्ञानिकों को उनकी अन्वेषण आविष्कार सम्बन्धी गुत्थियों को सुलझाने में स्वप्नों के सहारे एक प्रकार से ऐसा मार्गदर्शन मिला है जिससे वे न केवल गुत्थी सुलझा सके, वरन् अभीष्ट विधाओं में आशातीत सफलता भी प्राप्त कर सके।

मनोविज्ञानी फ्रायड का कथन है कि सचेतन मन की व्यवहार बुद्धि अचेतन मन की दिव्यता और विलक्षणता को दबाये रहती है। इसलिए शरीर का सूत्र संचालन करने वाला और मन को दिशा देने वाला अचेतन मन प्रायः उतना ही काम सम्भाल सकने की स्थिति में रहता है जिससे कायिक अंग संचालन की समस्याएँ सुलझती रहें और गतिविधियाँ चलती रहें पर यदि उसे इस कटघरे से बाहर निकलने का अवसर मिले, तो वह अदृश्य जगत की ऐसी जानकारियां प्राप्त कर सकता है जो साधारणतया हर किसी को उपलब्ध नहीं होती।

शरीर विज्ञानी हडसन का कथन है कि शरीर के पीड़ित या अवरुद्ध अवयव अपनी व्यथाओं और अड़चनों को स्वप्न में व्यक्त करते हैं। साथ ही यह उपाय उपचार भी बताते हैं कि किस प्रकार वे व्यथाओं से छूट सकते हैं। यदि कोई सुविज्ञ व्यक्ति स्वप्नों की सांकेतिक भाषा का रहस्य समझ सके और उनके दिये हुए दिशा निर्देशन पर ध्यान दे सके तो उसका प्रतिफल यह हो सकता है कि शारीरिक ही नहीं रोगों का निदान एवं उपचार ठीक तरह समझा जा सके और रुग्ण एवं परेशान व्यक्ति की कारगर सहायता की जा सके।

स्वप्न प्रत्यक्ष और परोक्ष का सम्मिश्रण है। उनमें हम अपनी निज की समस्याओं का हल ढूँढ़ सकते हैं। अतीन्द्रिय क्षमता विकसित होने पर हम दूर दर्शन दूर श्रवण, पुनर्जन्म आदि से जुड़ी हुई जानकारियां उपलब्ध कर सकते हैं तथा अदृश्य जगत के दिवंगत प्राणियों तथा देवात्माओं के साथ सम्बन्ध जोड़ सकते हैं।

साधारणतया स्वप्न रात्रि का भटकाव पर प्रतीत होते हैं। पर वस्तुतः वे वैसे होते नहीं। कभी-कभी इस खदान में उपयोगी मणि माणिक्य भी मिल सकते हैं। प्रयत्न की सफलता अभ्यास पर निर्भर है।


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