माता अंजनी और पिता पवन ने अपनी प्रतिभा के अनुरूप पुत्र को जन्म दिया, उसका शरीर इतना सुडौल था कि पत्थर पर गिरने से पत्थर टूट गया पर उनका कुछ न बिगड़ा। इस घटना की स्मृति में उनका नाम बजरंगी भी रखा गया। एक नाम हनुमान भी था।
राम के न्याय पक्ष को सहायता देने के लिए उनने प्राण-पण से प्रयत्न किया। सुरसा की माया से निपटना, लंका को जलाना, समुद्र पार करना, सुषेन वैद्य की बताई दुर्लभ संजीवनी बूटी लाना जैसे अनेकों साहस भरे काम उनने किये। “राम काज कीन्हे बिना, मोहि कहाँ विश्राम” उनका प्रण था। असुर विनाश की तरह उन्होंने अपने सहचरों समेत रामराज्य की स्थापना में भी योगदान दिया। अधर्म के विनाश और धर्म के संस्थापन में निरन्तर लगे रहने के कारण वे भगवान के सच्चे भक्त कहलाये। राम पंचायतन में ही उन्हें भी एक स्थान मिला। राम लक्ष्मण ने उनके कंधे पर बैठकर उनका गौरव बढ़ाया।