द्रवित-प्यार (kahani)

April 1986

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चैन आता नहीं, प्यार बाँटे बिना, क्या करूं, प्यार की धार रुकती नहीं। कौन, कितना, अभी तक, इसे पी सके, यह पता तो नहीं, किन्तु चुकती नहीं॥ 1॥

स्नेह को स्रोत से, फूटते हर समय। छल छलाकर, छलक, छूटते हर समय। कोई लूटे, न लूटे कहो क्या करें, हम लुटाकर मजा लूटते हर समय॥

जीत ही जीत है बाँटने में सदा, एक क्षण, द्वारा पर, हार रुकती नहीं। चैन आता नहीं, प्यार बाँटे बिना, क्या करूं, प्यार की धार रुकती नहीं॥ 2॥

यह पता है कि प्यासे बहुत हैं अभी। प्यार के बिन उदासे बहुत हैं अभी। प्यार के नाम पर लूट ही लूट हैं, इस तरह के तमाशे बहुत हैं अभी।

वास्तव में जरूरत जहाँ प्यार की, प्यार की धार, उस द्वार, रुकती नहीं। चैन आता नहीं, प्यार बाँटे बिना, क्या करूं, प्यार की धार रुकती नहीं॥ 3 ॥

इसलिये प्यार की धार बहती सदा। हर समय धार, हर भार सहती सदा। वह उतर जाये, हर प्यास का कठ में, प्यार की धार की साध रहती सदा॥

देखकर हर तड़पती हुई प्यास को, प्राण से प्रीति-बौछार रुकती नहीं। चैन आता नहीं, प्यार बाँटे बिना, क्या करूं, प्यार की धार रुकती नहीं॥ 4 ॥

प्यार की धार तो खेलती प्राण पर। बूँद टिकती न पर, शुष्क पाषाण पर। प्यास की पीर से जो पिघलने लगे, क्यों नहीं, वह हृदय, आज इंसान पर॥

कोई उर्वर-धरा तो न प्यासी रहे, इसलिये यह द्रवित-धार रुकती नहीं। चैन आता नहीं, प्यार बाँटे बिना, क्या करूं, प्यार की धार रुकती नहीं॥ 5॥

*समाप्त*


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