अन्तरिक्ष में समर्थ और बुद्धिमान प्राणी

April 1986

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क्या इस पृथ्वी पर ही बुद्धिमान प्राणी रहते हैं? क्या मानवी प्रगति इस विश्वब्रह्मांड में अनोखी और एकाकी है? इस प्रश्न का उत्तर अदूरदर्शिता और अहमन्यता के आधार पर ही “हाँ” में दिया जा सकता है। किन्तु यदि अन्वेषण बुद्धि का उपयोग किया जाय और प्रमाणों को टटोला जाय तो प्रतीत होगा कि प्रगति की प्रक्रिया अन्यत्र भी चल रही है, चलती रही है और इतनी आगे है कि मनुष्य को वहाँ तक पहुँचने में अभी काफी देर लगेगी।

ब्रह्माण्ड की समग्रता और उसमें प्राणियों का योगदान विषय पर जो अन्वेषण चल रहा है उससे ऐसे आधार उभरकर आते हैं जिनके सहारे यह स्वीकार किये बिना नहीं रहा जा सकता कि ईश्वर का कर्तृत्व इतना ही सीमित नहीं है, जितना कि हम देखते और समझते हैं। उसने एक से एक छोटे और एक से एक बड़े सृजन किए हैं। उसकी सृष्टि के घटक कितने अणु और विभु हैं। इसकी हम पूरी तरह कल्पना भी नहीं कर सकते।

शोधकर्ताओं का कथन है कि इस ब्रह्माण्ड में प्रायः दस हजार ग्रहों में विकसित स्तर का जीवन है, जिन्हें हम अपने शब्दों में देव या दैत्य भी कह सकते हैं। पृथ्वी वाले अन्य लोकों के प्राणवानों के साथ संपर्क नहीं साध सके हैं, वे इसलिए आरम्भिक चरण ही उठा रहे हैं और अन्तरिक्ष में भ्रमण कर सकने वाले साध नहीं जुटा रहे हैं। पर उनने सम्भवतः पृथ्वी के जन्मकाल से ही इसे अण्डे बच्चे की तरह पाला है और अपनी संचित पूँजी में से मूल्यवान अनुदान दिया है। अन्यथा यहाँ आदिम काल के अमीबा जैसे क्षुद्र और डायनोसौर जैसे वृहतकाय प्राणी ही रहते। पीढ़ियों के विकास में मूल सत्ता यथावत् ही रहती है। परिस्थितियों के अनुरूप उनमें यत्किंचित् परिवर्तन ही होता है। बन्दर से मनुष्य नहीं हो सकता। यदि हो सका होता तो मनुष्य की संरचना में भी अब तक भारी हेर-फेर हो गया होता या हो जाता। पर ऐसी कोई सम्भावना नहीं है। मनुष्य वर्तमान स्तर पर ही उत्पन्न हुआ है। आदिम काल में वह वनमानुष नहीं था वरन् वैसा था जैसा कि देवत्व सम्पन्नों को होना चाहिए। उन दिनों जबकि मानवी प्रतिभा को सुपुर्द किया जा रहा था, उच्च लोकवासियों ने उसे सुव्यवस्थित एवं सुयोग्य बनाने में भारी योगदान दिया।

यह सुनिश्चित है कि उच्च लोकों के निवासी पृथ्वी की खोज खबर लेने बीच-बीच में भी आते रहे हैं। किन्तु वैज्ञानिक विकास की कमी से एक स्थान की जानकारी सर्वत्र फैलने में सुविधा नहीं रही। किन्तु अब संचार साधनों की अभिवृद्धि से वह स्थिति आ गई है, जिसमें अद्भुत अनुभवों का विस्तार एक कोने से दूसरे कोने तक हो सके।

उड़न तश्तरियों के पृथ्वी के वातावरण में आते-जाते रहने के प्रमाण प्रायः एक शताब्दी से मिलते रहे हैं। दृष्टि भ्रम, प्रकृति की गुच्छक आदि रूपों में उन दृश्यों को झुठलाया भी जाता रहा है पर कुछ ऐसे अकाट्य प्रमाण भी हैं जो अपने अस्तित्व और कर्तृत्व को सिद्ध करने के लिए पर्याप्त हैं।

पुरातत्व वेत्ताओं ने भी पृथ्वी पर ऐसे प्रमाण उपलब्ध किये हैं जो बिना असाधारण बुद्धिमता एवं साधन सामग्री के विनिर्मित नहीं हो सकते। ऐसे प्रमाणों की इतनी बड़ी शृंखला है कि उसे देखते हुए तथ्यों की पुष्टि दर पुष्टि होती चली जाती है। जैसा कि बच्चों को इतिहास की पुस्तकों में पढ़ाया जाता है, यदि वैसी ही स्थिति आदिम कालीन मनुष्य की पिछड़ी रही होती तो उनका कर्तृत्व ऐसा नहीं हो सकता था कि आधुनिकतम शिल्पियों को भी आश्चर्य से चकित कर दे।

पिछले दो दशकों में राकेट विमानों द्वारा मनुष्य सहित चन्द्रयात्रा हुई। अतिरिक्त अन्य प्रयोजनों के लिए कई ऐसी ही अन्तरिक्ष यात्राऐं सम्पन्न हुईं जिनमें मनुष्य गये थे। उनका अन्य लोक वासियों के साथ प्रत्यक्ष मिलन तो नहीं हुआ पर उनके द्वारा जो कहा सुना गया वह भी रिकार्ड किया गया। यह कोई भ्रम तो नहीं है? यान्त्रिक गड़बड़ी तो नहीं है? पृथ्वी की आवाजें ही तो यानों से टकराकर इस प्रकार की प्रतिक्रिया तो उत्पन्न नहीं कर रही हैं, इस प्रकार की आशंकाओं का अनेक प्रकार से निराकरण किया गया। टोह के लिए पृथ्वी पर अवस्थित कन्ट्रोल रूम से पूछताछ की गई किन्तु उससे ऐसा कुछ सिद्ध न हुआ कि पृथ्वी से उनका पीछा करने के लिए या वार्त्तालाप करने के लिए कोई उपकरण भेजा गया है।

अपोलो 12 चन्द्रमा की यात्रा पर गया था। उसमें तीन अन्तरिक्ष यात्री थे। उनने देखा कि यान के साथ ही समान दूरी एवं निश्चित कोण पर दो पदार्थ पीछा कर रहे थे। नासा के कन्ट्रोल रूम से पूछताछ की गई तो उनने बताया कि “पृथ्वी से ऐसी कोई वस्तु नहीं भेजी गयी है। यह आकाश की ही कोई वस्तु होनी चाहिए अथवा तुम लोगों का दृष्टि भ्रम है।

इसी प्रकार अन्तरिक्ष यान कमांड माड्यूल से पृथक होकर जब चन्द्रमा के तल की ओर बढ़ा तो ऐसी विचित्र ध्वनियाँ आरम्भ हो गईं, मानो कुछ लोग आपस में जोर-जोर से वार्तालाप कर रहे हैं। यह ध्वनियाँ यान के भीतर भी सुनी जाती रहीं और पृथ्वी के कण्ट्रोल रूम में भी। रिकार्ड उसका भी किया गया पर ऐसा कोई समाधान न निकला जिससे वस्तुस्थिति को जाना जा सके। यह क्रम 15 मिनट तक चलता रहा और बाद में अपने आप बन्द हो गया।

अपोलो 7 के यात्री अपने कमरे में एक विचित्र संगीत सुनते रहे। रात को दस बजे वे आवाजें किसी रेलगाड़ी की घड़घड़ाहट में बदल गई। कई संकेत बोधक सीटियाँ बजतीं और बदलती रहीं पर यह पता न चला कि यह सब कौन कर रहा है और क्यों कर रहा है?

खगोल विज्ञानियों ने पिछले 50 वर्षों में ऐसी अनेकों गतिविधियों रेडियो दूरबीनों द्वारा देखी हैं, जिनसे प्रतीत होता है मानों किन्हीं समझदार प्राणियों द्वारा वहाँ कुछ उलट-पुलट की जा रही है। विज्ञानी जॉन नील का अनुमान था कि चन्द्रमा प्राणि रहित नहीं है। वहाँ से पृथ्वी के साथ जुड़ने वाला कोई अविज्ञात तारतम्य चल रहा है।

अपोलो 12 को धरती से उठे 90 मिनट ही हुए थे कि उस पर किसी तेज रोशनी ने कसकर एक लात जमाई और यान के भीतर का सारा सामान उलट-पुलट करके रख दिया।

जैमिनी यान के संचालक मेजर एडवर्ड ह्वाइड ने भी ऐसे ही अनुभव किये। उनके यान की बिजली बार-बार जलती और बुझती रही। साथ ही तीन अज्ञात गोले उस यान के इर्द-गिर्द मँडराते रहे, मानों किसी जासूसी के उद्देश्य से वे पीछे लगे हों। उन पदार्थों में से लम्बी-लम्बी बांहें बाहर आतीं, फैलती और सिकुड़ती रहीं। उन यात्रियों ने अपनी पुस्तक “वी सेवन” में ऐसे ही विचित्र अनुभवों का उल्लेख किया है जो उस यात्रा के बीच उन्हें होते रहे और हैरत में डालते रहे।

वैकानूर के ब्रह्माण्डीय अड्डे से दो यात्रियों समेत एक अन्तरिक्ष यान भेजा गया। वह कुछ ही दूर जा पाया था कि पीछे से कोई बला साथ लग गई। यात्री अड्डे को सूचनाऐं देते, पर उसकी सहायता सम्भव न हो सकी तो वह आकाश में ही अपना अस्तित्व खो बैठे।

यद्यपि इस प्रकार की घटनाऐं अभी गोपनीय रखी गई हैं, ताकि प्रतिपक्षियों के सम्बन्ध में अधिक जानकारी प्राप्त हो सके। तो भी यह किसी से छिपा नहीं है कि अन्तरिक्ष यान निर्विघ्न अपनी यात्राऐं पूरी नहीं करते। उनकी मुठभेड़ किन्हीं ऐसी शक्तियों के साथ होती रहती है जो मनुष्य से अधिक सामर्थ्यवान एवं प्रगतिशील है।


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