हर एक गुरु नहीं हो सकता। कीमती शहतीर पानी में स्वयं भी बहता हुआ चला जाता है और अनेक जीव-जन्तु भी उस पर चढ़कर जा सकते हैं, पर मामूली लकड़ी-घुन लगी लकड़ी पर चढ़ने से लकड़ी भी डूब जाती है और जो चढ़ता है, वह भी डूब जाता है। इसीलिए ईश्वर युग-युग में लोकशिक्षण के लिए गुरु रूप में स्वयं अवतीर्ण होते हैं ताकि अनेकों को पार सकें। सच्चिदानन्द ही गुरु है। -रामकृष्ण परमहंस