हस्तलिपि व्यक्तित्व का दर्पण है

March 1999

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वर्षों पूर्व महात्मा गाँधी ने एक पत्र लिखा था। इस पत्र का प्रारूप इंग्लैण्ड होता हुआ हवयना जा पहुँचा, प्रकाशन के लिए। इस पत्र के प्रिन्ट पर नजर पड़ते ही प्रकाशक मार्क्स हायक एकदम अचरज में पड़ गए, क्योंकि इतनी विचित्र हस्तलिपि उन्होंने अपने लम्बे जीवनकाल में कभी नहीं देखी थी, यद्यपि उन्हें दुनिया की अगणित हस्तलिपियों को पढ़ने और देखने का अवसर मिला था। इस पत्र पर नीचे महात्मा गाँधी जी के हस्ताक्षर थे। मार्क्स ने गाँधी जी के बारे में का फल कुछ पढ़ और सुन रखा था। महारथ

उन्हें गाँधी जी एक अलग ही प्रकार के महापुरुष लगते थे। वे राजनीति में थे, परंतु महात्मा थे। वे स्वतंत्रता संग्राम का संचालन कर रहे थे, लेकिन अहिंसा व मैत्री भावना के माध्यम से वे दुनिया के सबसे शक्तिशाली साम्राज्य को अपने देश से हटाना चाहते थे, लेकिन निहत्थे सत्याग्रहियों के बल पर उनको गाँधी जी का आचार बड़ा विचित्र लगता था। राजनीति को उन्होंने रचनात्मक कार्य से जोड़ रखा था। सफाई करना, चरखा चलाना, खादी पहनना उनके स्वाधीनता संग्राम की अनिवार्य शर्त थी। वे स्वयं भी नियमित चरखा काटते थे।

गाँधी जी के प्रशंसक होने के नाते मार्क्स उनके बारे में और भी अधिक जानने को उत्सुक थे विशेषकर भविष्य को लेकर कि क्या गाँधी जी अपने उद्देश्यों में सफल हो सकेंगे। ऐसे में उन्हें याद आयी वियना विश्वविद्यालय के हस्तलिपि विज्ञान-विशेषज्ञ प्रो.. रयफल शेमनि की। उनको इस विद्या में हासिल थी। मार्क्स ने यह पत्र उन्हें दिखाने का निश्चय किया। इस निर्णय के बाद उन्होंने गाँधी जी के हस्ताक्षर काटकर अलग कर दिए। नाम को पत्र से अच्छी तरह से अलग करने के बाद मार्क्स जा पहुँचे प्रो.. रायफल के घर। प्रोफेसर उस समय अपने अध्ययनकक्ष में थे। प्रायः प्रो. रायफल से उस समय मिलना बहुत मुश्किल होता था, जब वे अपने अध्ययन कक्ष में हों। यही कारण था कि जब मार्क्स उनसे मिलने पहुँचे तो एक बार तो उन्होंने मिलने से इनकार कर दिया, पर फिर न जाने क्या सोचकर उनको बुला लिया।

मार्क्स ने उन्हें बताया कि उनके पास एक पत्र का प्रारूप है। जिसकी हस्तलिपि बड़ी अजीबोगरीब है। मैं इस हस्तलिपि वाले व्यक्ति के बारे में जानना चाहता हूँ। मुझे विश्वास है कि आप इस संबंध में अवश्य बता सकेंगे। इसीलिए मैं आपके पास विशेष रूप से आया हूँ। उस पत्र को लेकर जैसे ही प्रो. रायफल ने देखा वैसे ही बोल उठे- “भई, ऐसी हस्तलिपि तो मैं स्वयं भी जीवन में पहली बार देख रहा हूँ। खैर.......” इतना कहकर वे उन टेढ़े-मेढ़े अक्षरों में पूरी तरह लीन हो गए। फिर लगभग आधे घण्टे बाद बोले, “यह व्यक्ति असाधारण है, महान है। इसका जीवन सदैव संघर्षशील रहा है और आगे भी लोकहित में संघर्ष करता रहेगा। यह व्यक्ति सामाजिक कुरीतियों से लड़ने वाला तथा उन्हें समाप्त करने वाला है। जिस कार्य को करने का संकल्प लेता है, उसे पूरा करके ही छोड़ता है। इस हस्तलिपि वाले व्यक्ति की जैसी स्मरणशक्ति किसी-किसी के पास ही होती है। यह व्यक्ति इतिहास में अमर रहेगा। यह अहिंसा का पुजारी है। यह व्यक्ति इतना दयालु है कि किसी का भी दुःख-दर्द नहीं देख सकता। कुल मिलाकर संक्षेप में यही कहा जा सकता है कि यह व्यक्ति अपरिभाषित है। सत्य को ही कहता है, करता है बिना किसी भय के।”

जब मार्क्स ने इस व्यक्ति के बारे में अधिक पूछा तो उत्तर मिला, “यह व्यक्ति कोई भी कार्य अपने लिए नहीं करता, न ही इसकी कुछ महत्त्वाकाँक्षा है। इसे अपने उद्देश्य में शतप्रतिशत सफलता मिलेगी, परंतु इसे किसी बात की चिंता नहीं होती है। केवल यह व्यक्ति अपनी आत्ममुक्ति के लिए चिन्तित है। इस व्यक्ति से संबंधित सबसे विशेष बात यह है कि यह व्यक्ति अस्वाभाविक मृत्यु मरेगा। इसकी हत्या की जाएगी। यह शहीद होगा।”

प्रो. रायफल ने एक क्षण आँख बंद कर मौन रखा, फिर बोले- “महापुरुष शहीद ही होते हैं। कुछ निपट स्वार्थी लोग महापुरुषों के व्यापक उपदेशों को बर्दाश्त नहीं कर पाते। उनको लगता है कि इनके विचारों से हमारे स्वार्थों को खतरा है और

इसीलिए उनको अपने रास्ते से हटाने का प्रयत्न करते हैं। संसार को नवजीवन देने वाले महापुरुष प्रायः शहीद ही होते हैं।”

मार्क्स ने प्रो. रायफल से अगला प्रश्न किया-आपके विचार से इस व्यक्ति को किस धर्म का अनुयायी होना चाहिए।” उत्तर था-इस हस्तलिपि वाले व्यक्ति का धर्म केवल मानवता है।” मार्क्स का प्रो. रायफल से अंतिम प्रश्न था कि “इस व्यक्ति की कमजोरी क्या है।” “इस व्यक्ति की सबसे बड़ी कमजोरी है कि यह व्यक्ति केवल अपनी आत्मा की आवाज सुनता है एक जन नेता के लिए यह बहुत बड़ी कमजोरी हो सकती है।”

काल ने सही पलों में इस सच को निर्णित किया कि हस्तलिपि व्यक्ति के चरित्र एवं भविष्य की गवाही देती है। सही समय पर गाँधी जी के जीवन में प्रो. रायफल की सभी बातें शत-प्रतिशत सही साबित हुई।


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