पवित्र कर दिया (Kahani)

March 1999

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काँची नरेश की राजकुमारी प्रेतछाया से पीड़ित हुई। भूत सामान्य नहीं, ब्रह्मराक्षस था। तब श्री रामानुजाचार्य बुलाये गये। उन्होंने वहाँ जाकर पूछा- आपको यह योनि क्योंकर मिली। रोकर ब्रह्मराक्षस बोला- मैं विद्वान था, किंतु मैंने अपनी विद्या छिपा रखी। किसी को भी मैंने विद्यादान नहीं किया, इससे ब्रह्मराक्षस हुआ। आप समर्थ हैं, मुझे इस प्रेत तत्व से मुक्ति दिलाइये। श्री रामानुज ने राजकुमारी के मस्तक पर हाथ रखकर जैसे ही भगवान का स्मरण किया, वैसे ही ब्रह्मराक्षस ने उसे छोड़ दिया, क्योंकि वह स्वयं प्रेतयोनि से मुक्त हो गया। उस दिन से श्री रामानुज ने प्रतिज्ञा की कि वह स्वाध्याय का लाभ अपने समाज को भी देते रहेंगे।

पाठ समाप्त हुआ। आचार्य रामानुज प्रदक्षिणा के लिए उठे ही थे कि सामने से चाँडाल आ गया। उसे देखते ही आचार्यजी क्रुद्ध हो उठे और गर्जकर बोले- शठ! आगे से हट जा, रास्ते को अपवित्र न कर। चाँडाल ठिठक गया। लौटना चाहा पर किसी अज्ञात शक्ति ने उसे रोक दिया। हाथ जोड़कर उसने विनयपूर्वक पूछा- भगवान् अभी चला जाता हूँ, किन्तु आप यह बताइए जाऊँ किधर? मेरे चारों ओर पवित्रता बिखरी पड़ी है, फिर मैं अपवित्र कहाँ जाऊँ? रामानुज की आँखों से अज्ञान का पर्दा हट गया। चाँडाल सब ओर पवित्रता के ही दर्शन करता है और मैं भगवान का भक्त होकर भी अपने मन का मल भी नहीं साफ कर सका?

रामानुज ने हाथ जोड़कर कहा- क्षमा करो तात! आज तो तुमने मेरी आँखें खोल दीं। तुमने तो मुझे भी पवित्र कर दिया।

1812 ई. में जब अँगरेजों और अमेरिकनों में संग्राम चल रहा था, सीचिवे मास नामक बस्ती के सन्निकट समुद्र में अँगरेजों का जहाज दिखाई दिया। उसमें से कुछ सिपाही छोटी-छोटी नाव में बैठकर बस्ती की ओर आग लगाने के निमित्त बढ़ने लगे। एक मकान के ऊपर की मंजिल में खिड़की से रेबिका वेट्स नामक 12 वर्षीया एक लड़की यह दृश्य देख रही थी। साराबिन्सर नामक एक युवक से इस कन्या ने कहा-क्या कहूँ मैं पुरुष नहीं हूँ। देखो किस प्रकार सिपाही नाव में बैठकर आ रहे हैं।” साराबिन्सर ने कहा-यदि तुम पुरुष होती तो क्या करतीं।” लड़की ने उत्तर दिया-मैं संग्राम करती, अपनी कुछ परवाह न करती। सारा बिन्सर ने उत्तर दिया कि कदाचित लोग इसलिए छिप रहे हों कि सिपाही आ जाएँ तो उन पर वे टूट पड़ें। रेबिका ने कहा-अरे ढोल कहाँ हैं जो बाबा कल मरम्मत के लिए लाये थे। रेबिका उन ढोलों को तथा कई लड़कियों के साथ मकानों के बाहर छिपकर निकल गई और टीलों के पीछे जोर-जोर से ढोल बजाने और हल्ला मचाने लगी। बस्ती के जो लोग डरकर छिप गये थे, ढोल के शब्द और चिल्लाहट सुनकर समझे कि पास गोस्टनगर से सहायता के निमित्त सिपाही आ गये, इसलिए साहस करके नाव में बैठकर नदी में आगे बढ़ गये और शत्रुओं पर हमला करने लगे। ऐसा होते ही अंग्रेजी सिपाही भयभीत हो गये और अपनी नावों को वापस कर अपने जहाज पर चले गये।


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