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Akhand Jyoti
Year 1999
Version 2
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March 1999
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अंतरात्मा को कुचलना आत्महत्या से भी भयंकर अपराध है।
-आचार्य पं. श्रीराम शर्मा
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Page Titles
पुरुषार्थ की दिशा
तीसरा संस्करण
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मनुष्य गया-गुजरा नहीं प्रचंड शक्ति का पुँज है
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विवेक का नाश-सर्वनाश
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कहीं हम महाविनाश की ओर तो नहीं बढ़ रहे
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जातस्य हि ध्रुवों मृत्युर्ध्रुवं जन्म मृतस्य च
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प्रकृति के साथ छेड़छाड़ (Kahani)
विचार-प्रवाहों से प्रभावित होता है चिंतन
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ध्यान क्यों व कैसे किया जाय
संत बनना हो तो क्रोध न करें (Kahani)
हस्तलिपि व्यक्तित्व का दर्पण है
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कहीं आपने भी होली यों ही जलते हुए तो नहीं देखी
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‘विशुद्धि’ में प्रतिष्ठित कुण्डलिनी देती है अक्षय यौवन
धर्मराज (Kahani)
पुनर्जन्म को प्रमाणित करती एक सत्य घटना
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प्रार्थना एक विनम्र पुरुषार्थ
संकीर्ण स्वार्थपरता से उबरें, देवमानव बनें
पापनाशक चांद्रायण व्रत-विविध रूप
पवित्र कर दिया (Kahani)
निर्लिप्त-अनासक्त कर्म
मैं उसी को देखता हूँ (Kahani)
आध्यात्मिक विकासवाद ही देता है अन्ततः समाधान
सेवा योग की साधना (Kahani)
युगपुरुष की लेखनी से - पं. श्रीराम शर्मा आचार्य वांग्मय-अमृत कलश
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सभ्य समाज का निर्माण किस बुनियाद पर
मुक्ति और स्वर्ग का सुख (Kahani)
मातृवत् परदारेषु
आसमा हैरी (Kahani)
सर्प हमारे शत्रु नहीं, मित्र हैं
सेवा-व्रती का आदर्श (Kahani)
सच्चा बैरागी व योगी कौन
VigyapanSuchana
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ईश्वर पर विश्वास नहीं है (Kahani)
पुनः प्रकाशित सामयिक लेख- - एकांत सेवन भी करिये
अहं गला तो बने ब्रह्मर्षि
मारने वाले से बचाने वाले की आयु ज्यादा है (Kahani)
परमपूज्य गुरुदेव की अमृतवाणी- - परिष्कृत मनःस्थिति ही स्वर्ग है
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बुद्धिमानो! बुद्धि का सदुपयोग करो
अपनों से अपनी बात- - नरपामर की श्रेणी से ऊँचा उठने का यही सौभाग्य भरा सुअवसर
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ॐ भू र्भुवः स्वः
तत्
स
वि
तु (र्)
व
रे
णि
यं
भ
र्गो
दे
व
स्य
धी
म
हि
धि
यो
यो
नः
प्र
चो
द
या
त्
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