राजा श्रोणिक सदा अशान्त रहते थे। निद्रा की न्यूनता, चेहरे की उदासी, अतृप्ति और आशंका उन्हें हर घड़ी हैरान किये रहती थी। कारण और समाधान पूछने वे भगवान बुद्ध के पास गये।
प्रवचन चल रहा था, सभी भिक्षु अति प्रसन्नमुद्रा में उसे श्रवण कर रहे थे। चेहरे पर तेजस्विता और आनन्द की पुलकन से सभी दिव्य लग रहे थे।
राजा की जिज्ञासा को समझते हुए तथागत ने उसी प्रवचन में यह तथ्य जोड़ दिया कि मनुष्य क्लान्त और उल्लसित क्यों रहता है। उन्होंने कहा-तृष्णायें ही मनुष्य को खाती हैं। उनसे बचा जा सके तो राजा-रंक सभी समान रूप से सुखी रह सकते हैं।
सुबह-सुबह एक लोहार घर से बाहर निकला। रास्ते में उसे लोहे के दो टुकड़े मिल गए। उसने उन्हें उठा लिया। घर लौटने पर लोहार ने एक टुकड़े से तलवार बनायी और दूसरे को ढाल बना दिया।
कुछ दिनों के बाद एक योद्धा आकर तलवार और ढाल खरीद कर ले गया। उस योद्धा ने कई युद्धों में उनका उपयोग किया। एक युद्ध में तलवार टूट गयी, मगर ढाल भी पास ही पड़ी थी।
रात में जब सब सो गए, तलवार कराहती हुई ढाल से बोली, बहिन देखो मेरी कैसी दुर्दशा हो गयी है और एक तू है, ज्यों-की-त्यों सुरक्षित।
हम दोनों में एक फर्क जो है-ढाल ने कहा।
वह क्या? तलवार पूछ बैठी। तू सदैव किसी को मारने-काटने का काम करती रही है और मैं बचाने का। ढाल ने फर्क बताते हुए आगे कहा-ख्याल रखो, मारने वाले से बचाने वाले की आयु ज्यादा है।