ब्रह्मदर्शन होने से मनुष्य चुप हो जाता है। जब तक दर्शन न हो, तभी तक विचार होता है। घी जब तक पक न जाय, तभी तक आवाज करता है। पके घी से शब्द नहीं निकलता। पके घी में कच्ची पूरी छोड़ी जाती है तो फिर एक बार वैसा ही शब्द निकालता है। जब कच्ची पूरी को पका डाला, तब वह फिर चुप हो जाता है। वैसे ही समाधिस्थ पुरुष लोकशिक्षण के लिए नीचे उतरता है, फिर बोलता है।
-श्री रामकृष्ण परमहंस
“गीध खूब ऊँचा उड़ता है पर उसकी नजर लाश पर-हड्डियों पर ही रहती है। जो खाली पण्डित हैं, वे सुनने के ही हैं, पर उनकी कंचन-कामिनी पर आसक्ति होती है-गीध की तरह वे सड़ी लाशें ढूँढ़ते हैं। आसक्ति का घर अविद्या के संसार में है। दया-भक्ति-वैराग्य ये विद्या के ऐश्वर्य हैं।”