सेवा योग की साधना (Kahani)

March 1999

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एक व्यक्ति गुरु आश्रम में वर्षों रहा किंतु कुछ पा न सका। उसकी कुछ पाने की वर्षों से इच्छा थी, वह पूरी न होते देखकर उसने अपनी व्यथा गुरु जी को बताई। गुरु ने आदेश दिया कि यदि वास्तव में तेरी कुछ पाने की इच्छा है, तो नगर के बाहर एक सराय है, कुछ दिन वहाँ ठहर। सराय का जो मालिक है उसे ठीक से समझ। तेरी इच्छा पूरी होगी। वह युवक उस सराय में ठहरा, किंतु उसके मन में शंका बनी रही कि इतने बड़े संन्यासी के आश्रम में इतने दिनों रहा, कुछ न मिल सका, भला सराय के मालिक से क्या मिलने वाला है। किन्तु गुरु की आज्ञा मानकर सराय में जाकर ठहर गया। सायंकाल का समय था। देखा सराय का मालिक बर्तनों के ढेर को साफ करने में लगा है। बर्तन साफ हो जाने के बाद उसने कमरों की झाड़ू लगाई। आगन्तुकों को बड़ी विनम्रता से ठहराया। उनकी व्यवस्था की। जब इस कार्य से उसे फुरसत मिली तो युवक ने कहा- मेरे अमुक आश्रम के गुरु ने आपके पास मुझे कुछ सीखने के लिए भेजा है।

मालिक बोला- मेरे पास सीखने के लिए क्या है? आये हो तो ठहरो, किन्तु मैं सिखा नहीं सकता। तुम कुछ स्वयं सीख सको तो बात दूसरी है और दुनिया में कोई किसी को सिखा भी नहीं सकता। लोगों को स्वयं सीखना पड़ता है। युवक ने सोचा- यहाँ भी गलत आ फँसे। दो-चार दिन ठहरकर वह वही क्रमबद्ध क्रिया देखता रहा। आगंतुक आते हैं, मालिक विनम्र भाव से, निस्वार्थ भाव से समान रूप से ठहराता, उनके कमरों की सफाई करता, बिछावन देता। समय पर भोजन की व्यवस्था करता। जाते समय उन्हें विदा करता। यह सब देखकर युवक ऊबने लगा कि इससे क्या सीखने भेजा है गुरु ने- झाड़ू लगाना, बरतन साफ करना, आगंतुकों को ठहराना, विदा करना। भला यहाँ क्या है सीखने के लिए। युवक ने वापस जाकर गुरु को सारा वृत्तान्त बताया कि वहाँ क्या है जो आपने सीखने को भेज दिया? गुरु ने कहा-यदि तुम वहाँ भी कुछ न सीख सके तो मेरे पास भी सीखने को कुछ नहीं है, क्योंकि मैं भी अपने आश्रम में उसी सेवा योग की साधना सिखाता हूँ, सेवा के बलबूते ही लोगों को अपना बनाया जा सकता है और सब कुछ पाया जा सकता है। युवक की समझ में अपनी भूल आ चुकी थी।


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