प्रकृति के साथ छेड़छाड़ (Kahani)

March 1999

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दो मित्र मोटरसाइकिल पर सवार होकर जा रहे थे कि एक पेड़ से टकरा गये। चालक तो टक्कर होते ही मारा गया। पीछे जो बैठा था वह भी बुरी तरह घायल हो गया था। उधर से एक राहगीर निकला। उसने देखा बेचारे की गर्दन पीछे घूम गई दिखाई देती है। बड़ी मेहनत से उसने गर्दन घुमाई और मोड़कर आगे की ओर कर दी इतने में पुलिस आई और छानबीन की कि क्या हुआ। राहगीर बोला-चालक तो टक्कर होते ही मारा गया, किन्तु दूसरे की गर्दन पीछे मुड़ गई थी, जो मैंने सीधी की तब तक कुछ साँस थी। गर्दन सीधी करते ही इसके मुँह से आह निकली और मर गया। पुलिस के सिपाही ने गौर से देखा कि जिसकी गर्दन सीधी की है, वह हवा के बचाव के कारण कोट उल्टा पहने था ताकि सीने में हवा न लगे और राहगीर ने उसका सिर उल्टा समझा, जो धोखे में सीधे सिर को ही उल्टा घुमा दिया। वह उसमें ही मारा गया अन्यथा वह जिन्दा था। न सुधारा जाता तो बच जाता। करीब-करीब हमने भी प्रकृति के साथ यही खिलवाड़ ही है। जहाँ भी छेड़खानी की कि सब कुछ अस्त-व्यस्त हो गया है।


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