निर्लिप्त-अनासक्त कर्म

March 1999

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नील नदी के उत्तरी किनारे पर एक बुजुर्ग दरवेश की छोटी-सी झोंपड़ी थी। उसमें वह स्वं, उसकी पत्नी और चार बच्चे रहते थे। दरवेश रात-दिन खुदा की इबादत में मशगूल रहता। उसकी पत्नी सुबह-शाम निकट की एक बस्ती से जरूरत के मुताबिक़ आटा-दाल माँग लाती। बस्ती के लोग खुले हाथ से उसे खूब खैरात देते। इस तरह उस दरवेश के परिवार का गुजर-बसर हो रहा था।

एक दिन की बात है, नील नदी में भयंकर बाढ़ आयी हुई थी। उस दिन बहुत तेज बरसात हुई थी। आकाश काले बादलों से घिरा था। तेज तूफानी हवाएँ चल रही थीं। संध्या समय दरवेश ने अपनी पत्नी से कहा, “नदी के दूसरे किनारे पर एक पेड़ के नीचे एक फकीर सुबह से भूखा-प्यासा खुदा की इबादत कर रहा है। यह अच्छा नहीं लगता कि हम भरपेट भोजन करके सोएँ और वह भूखे पेट रहे।”

अपने पति की बात सुनकर उस स्त्री को आश्चर्य हुआ कि उसके पवि को सहज ही यह कैसे मालूम हो गया कि नदी के दूसरे किनारे पर कोई फकीर भूखा-प्यासा बैठा हुआ है? उसने सोचा, इसकी सत्यता परखनी चाहिए। उसके समक्ष प्रश्न यह था कि वह नदी के दूसरे किनारे तक पहुँचे कैसे? फिर भी उसने अपने पति से कहा-निश्चय ही यह कोई अच्छी बात नहीं है कि हम पेट भर भोजन करके सोएँ और वह खुदा का नेक बन्दा भूखा रहे। मैं चाहती हूँ कि मैं स्वयं उसके लिए भोजन लेकर जाऊँ, किंतु इसमें एक कठिनाई है।”

दरवेश ने पूछा- “वह क्या?”

पत्नी बोली- “आज नदी में भयंकर बाढ़ आयी हुई है। मैं भला नदी के दूसरे किनारे तक कैसे पहुँच सकूँगी? अब आप ही इसका कोई उपाय बताएँ।

दरवेश बिना एक पल का इंतजार किए बोला, “इसमें कौन-सी परेशानी की बात है। तुम भोजन लेकर अवश्य ही उस फकीर के पास जाओ। जब नील नदी का किनारा आ जाए, तो नदी से कहना, हे नील नदी, मुझे उस दरवेश के नाम पर रास्ता दे दे, जिसने हमारे वैवाहिक जीवन के पिछले बीस वर्षों में कभी भी मेरे साथ सहवास नहीं किया है।” बस इतना कहते ही नील नदी तुम्हें रास्ता दे देगी।”

अपने पति की अटपटी बातें सुनकर उस स्त्री को अतीव आश्चर्य हुआ। उसने एक बार अपने दरवेश पति के चेहरे पर नजर डाली और सोचने लगी, “मेरे इनसे चार बच्चे हैं और ये कहते हैं कि उन्होंने मेरे साथ कभी सहवास नहीं किया है। भला यह कैसे हो सकता है?”

यद्यपि अपने पति के इस कथन से उसके मन में शंका उत्पन्न हो गयी, फिर भी वह शाँत रही। अपने मन की उधेड़बुन को बाहर न प्रकट करते हुए अपने चौके में जाकर उसने उस अनजाने फकीर के लिए भोजन तैयार किया और नील नदी की ओर चल दी। रास्ते भर वह अपने पति के कहे हुए वाक्य को मन में दुहराती रही। जब वह नदी के किनारे पहुँची, तो उसने एक बार हतप्रभ होते हुए हैरानी से नदी की ओर देखते हुए कहा- “हे नील नदी, मुझे अपने उस दरवेश के नाम पर रास्ता दे दे, जिसने आज तक मेरे साथ कभी सहवास नहीं किया।”

नदी में बाढ़ का पानी हिलोरें ले रहा था। पानी में नदी का कहीं ओर-छोर दिखाई नहीं दे रहा था। आकाश में काले बादल अभी भी छाए हुए थे। चारों ओर अँधेरा था। नदी में बाढ़ का पानी भयंकर गर्जन-तर्जन कर रहा था। ऐसे वातावरण में उस स्त्री की आवाज हवा में यूँ ही कहीं खो गयी। स्त्री ने वे ही शब्द फिर से दुहराने शुरू किए ही थे कि उसे नदी में एक अजीब-सी गड़गड़ाहट की आवाज होती सुनायी दी और उसने देखा कि नदी अपने में स्वयं सिमट रही है। थोड़ी ही देर में नदी का दूसरा किनारा सिमटकर पहले किनारे के पास आ लगा और नदी के फैलाव का आकार इतना छोटा हो गया इक वह स्त्री सिर्फ अपना एक कदम आगे बढ़ाकर उसे आसानी से पार कर सकती थी।

स्त्री ने तुरंत एक कदम आगे बढ़ाया और नदी पर कर ली। जैसे ही वह नदी को पारकर, जो एक छोटी नाली के समान हो गयी थी, दूसरी ओर पहुँची कि नदी फिर एक गड़गड़ाहट के साथ अपने असली आकार में आने लगी। कुछ ही क्षणों में नदी अपने असली रूप में आ गयी।

स्त्री भोजन लेकर जब नदी के उस ओर पहुँची, तो उसने देखा कि सचमुच ही वहाँ पेड़ के नीचे एक फकीर बैठा हुआ था। स्त्री ने फकीर पर एक नजर डाली।उसके चेहरे पर एक अजब गजब नूर था। उसकी आँखें अधखुली थीं। हाथों की उँगलियाँ बसबीह के मनकों पर धीरे .धीरे चल रही थीं। उसके होंठों पर अल्लाह का पाक नाम था।स्त्री ने फकीर के सामने चुपचाप भोजन रख दिया।फकीर ने एक नजर आसमान की ओर देखा, मानो वह मालिक का शुक्रिया अदा कर रहा हो। फिर बिना कुछ बोले वह चुपचाप भोजन कर चुका, तो वह दरवेश की पत्नी अपने बर्तन उठाकर वापस लौटने लगी। उस समय अँधेरा और भी अधिक गहरा और घना हो गया था। नदी पहले की ही भाँति साँप जैसी फुफकार रही थी। स्त्री को विचार आया कि वहाँ से यहाँ तक पहुँचने के लिए तो पति से तरीका पूँछ लिया था अब वापस कैसे चला जाए। वापसी के संबंध में उसने पति से कुछ भी नहीं पूछा था। फकीर ने देखा कि वह स्त्री वहीं खड़ी किसी परेशानी में कुछ सोच रही है, उसे इस तरह सोच में डूबी हुई देखकर वह बोला, “बहिन! तुम किस सोच में डूबी हो? “

वह बोली, मैंने वहाँ से यहाँ नदी पार करने का तरीका अपने पति से पूछ लिया था, लेकिन नदी की इस भयंकर बाढ़ में वापस लौटते समय नदी से क्या कहूँ कि वह मुझे रास्ता दे दे।यह पूछना मैं भूल गयी। मेरी समझ में नहीं आ रहा है कि मैं अब नदी कैसे पार कर सकूँगी?इसी कारण से मैं चिन्तित हूँ।”

उस स्त्री की बात सुनकर फकीर ने कहा- “हे साहिबा तुम्हें परेशान होने की कोई आवश्यकता नहीं, लौटते समय नदी से कहना, हे नील! मुझे उस फकीर के नाम पर रास्ता दे दे, जिसने जिसने पिछले बीस साल से आज तक भोजन नहीं किया है और साहिबा इतना कहने मात्र से नील नदी तुम्हें वापस जाने के लिए अवश्य रास्ता दे देगी।”

दरवेश की पत्नी और भी आश्चर्य में डूब गयी। उस फकीर ने अभी उसके सामने ही तो भोजन किया था और वह कहता है कि उसने जिसने बीस वर्षों से भोजन नहीं किया। आखिर यह क्या रहस्य है? उसको कुछ समय में नहीं आया। फिर भी वह नदी के किनारे आयी आर उसने फकीर का कहा वाक्य ज्यों-का -त्यों दोहरा दिया। नदी पहले की ही तरह गड़गड़ाहट की आवाज से सिकुड़ने लगी और क्षणभर में एक छोटी-सी नाली के समान हो गयी।स्त्री ने एक कदम आगे रखकर उसे पार कर लिया। नदी के उस ओर पहुँचते ही नदी फिर फैलने लगी और अपनी मूल स्थिति में आ गयी।

नदी पार करके स्त्री जब अपनी झोंपड़ी में पहुँची तो उसने अपने दरवेश पति से यह पूछा,” आपसे मेरे चार बच्चे है, किंतु आपने कहा कि आने मेरे साथ कभी भी सहवास नहीं किया है। इसी तरह उस फकीर ने स्वयं मेरे सामने भोजन किया,किंतु कहा कि उसने कभी भोजन नहीं किया है। इन्हीं दोनों वाक्यों के कहने पर नदी ने मुझे रास्ता भी दिया। आखिर इसका क्या रहस्य है? ”दरवेश बोला, “ये दोनों ही बातें सत्य हैं। यद्यपि तुम मेरी पत्नी हो और मैंने तुम्हारे साथ सहवास भी किया है, लेकिन मैंने ऐसा कामवासना की तृप्ति के लिए कभी नहीं किया। इसी प्रकार उस फकीर ने भी स्वाद के लिए कभी भोजन नहीं किया।इन्द्रियों के भोग एवं मन की आसक्ति के बिना किया गया कोई भी कर्म खुदा की इबादत ही है।” दरवेश। की पत्नी को अनासक्त कर्म’ की महिमा का बोध हो गया। उसके होंठों पर मधुर मुसकान खोलने लगी।


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