कहीं हम महाविनाश की ओर तो नहीं बढ़ रहे

March 1999

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इस युग के सबसे ज्यादा चर्चित द्रष्टा, भविष्यविद् के रूप में मान्यता प्राप्त फ्रेंच मनीषी नोस्ट्राडेमस की एक भविष्यवाणी पर पिछले दो-तीन वर्षों से सारे विश्व में काफी मंथन चल रहा है। उस भविष्यवाणी के अनुसार सितम्बर, 1999 में धूमकेतु की पूँछ में छिपी एक बड़ी उल्का के पृथ्वी पर टकरा जाने से सारी पृथ्वी पर गहरी तबाही आ जाएगी। इसके दुष्प्रभाव ज्वार-भाटों के साथ बड़े विकराल समुद्री तूफान-जलप्रलय भूकम्पों की श्रृंखला, अकाल एवं वैश्विक स्तर पर राजनैतिक उथल-पुथल के रूप में सामने आ सकते हैं। यहाँ तक कि इसी को उनने तृतीय विश्वयुद्ध की शुरुआत कहा है, जिसमें एक एण्टीक्राइस्ट उभरकर आ सकता है एवं पूरी पश्चिमी सभ्यता को नष्ट कर सकता है। नोस्ट्राडेमस 99, डूम्स डे 1999 ए डी, इत्यादि नामों से प्रायः दो दर्जन पुस्तकें इन दिनों बाजारों में बिकती देखी जा सकती हैं। स्टीफन पॉलस की नोस्ट्राडेमस-99 इन सबमें शिखर पर है। हम जिस समय-विशेष में जी रहे हैं उसके विषय में सभी ने विशिष्ट संधिवेला के रूप में इसे वर्णित भी किया है। परमपूज्य गुरुदेव ने तो आज से ग्यारह वर्ष पूर्व से ही युगसंधि महापुरश्चरण रूपी ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान की शुरुआत करा दी थी। ऐसे में यह विस्तार से जानना कि वास्तव से जानना कि वास्तव में ऐसा क्या कुछ होने जा रहा है, सभी की उत्सुकता को शाँत भी करेगा एवं अपनी भूमिका निर्धारित करने के लिए दिशाबोध भी देगा।

लेखक स्टीफनपॉलस यह स्वीकारते हैं कि नोस्ट्राडेमस, जो सोलहवीं सदी में फ्राँस में जन्मे, की प्रायः सभी भविष्यवाणियाँ सत्यता की कसौटी पर खरी उतरी हैं। इनके सारे पूर्वकथित काव्यरूप में छंदबद्ध हैं एवं इन्हें चतुष्पदी के क्रमांक के अनुसार जाना जाता है। सभी जानते हैं कि नोस्ट्राडेमस नो इन्हें चतुष्पदी के क्रमांक के अनुसार जाना जाता है। सभी जानते हैं कि नोस्ट्राडेमस ने इन्हें सबसे पहले लिखा व जानबूझकर इनके क्रम को अस्त व व्यस्त कर दिया। लिखकर उनने हवा में फेंक दिया व जिस क्रम से उन्हें उठाया, उसी क्रम से उस विलक्षण, भविष्यवक्ता ने उन्हें लिखना चाहा था-उसी की खोज फ्यूचरोलॉजिस्ट या नोस्ट्राडेमस विशेषज्ञ विगत कई वर्षों से कर रहे हैं व अपने आकलन अनुमानों के आधार पर उनकी घोषणा करते रहें हैं। यह सोलहवीं सदी का द्रष्टा एक कैथोलिक फ्राँस वासी था। उनकी भविष्यवाणियों में जहाँ विशेष रूप से किसी देश के नाम का संकेत है, उसे छोड़कर शेष सारी भविष्य-वाणियाँ उनके अनुसार फ्राँस या यूरोप पर ही लागू होती हैं। अपनी ही लेखनी से अपनी दिव्यदृष्टि से देखकर लिखें कथन को उनने इतना रहस्यमय क्यों बना दिया, इसका उत्तर संभवतः यह है कि वे अपने जीवनकाल में तत्कालीन शासकों के कोप का शिकार नहीं होना चाहते थे। फिर भी वे इतनी जटिलताओं में भी काफी कुछ संकेत ऐसे छोड़ गए हैं, जिनसे उलटबाँसियों का समाधान निकल आता है।

‘ नोस्ट्राडेमस 1999’ के लेखक स्टीफन पाँलस ने इन्हीं समाधानों का तर्कसम्मत संकलन कर शोध ग्रंथ लिखा है, जो इस समय लोकप्रियता के शिखर पर है। संकलन के क्रम में सेंचुरी 10, क्वोट्रेन 72 में आसमान से आतंक को लेकर धरती पर बरसने वाली संभावना का वर्णन है। इसके अनुसार एक विशाल उल्का, धूमकेतु की पूँछ से निकलकर धरती पर संभावना है कि अटलांटिक महासागर में कहीं सितम्बर, 1999 में आ गिरेगी। लेखक ने सेंचुरी 3, क्वाट्रेन 34 के हवाले से लिखा है कि 11 अगस्त, 1999 को जो खग्रास सूर्यग्रहण आने वाला है, उसका संकेत विख्यात द्रष्टा ने करते हुए इंगित किया है कि इसके साथ ही विपत्तियों के बादल घुमड़ने लगेंगे। अंतरिक्ष से आने वाले ‘मान्सटर’ (रुह्रहृस्ञ्जश्वक्र) से उनका संकेत एक विशाल धूमकेतु से था। एक ऐसा ही धूमकेतु जो पृथ्वी की कक्षा से बहुत समीप होकर गुजरा था, एक नवंबर 1948 को खोजा गया, जबकि नैरोबी में पूर्ण सूर्यग्रहण की स्थितियों में उसे देखा गया था। धूमकेतु की पूँछ के ‘काँमा’ बनने तक जब तक देखा नहीं जाता, वह अविज्ञात ही रहता है। ऐसा पहले विज्ञान की इस विकसित सदी में कम-से-कम पाँच बार हो चुका है कि वैज्ञानिक तब धूमकेतु का गुजरना बता पाए, जबकि वह या तो गुजरने बता पाए, जबकि वह या तो गुजरने वाले थे अथवा गुजर कर सौरमण्डल से बाहर हो चुके थे। धूमकेतु को नोस्ट्राडेमस ने ‘बिअर्डेड स्टार ‘ दाढ़ी वाले तारे की संज्ञा देते हुए उसे पृथ्वी पर सूर्य के पीछे से आते हुए बताया है। ग्रहों की दशा देखते हुए इसका समय सूर्यग्रहण के बाद जब सूर्य कर्क राशि से निकल ही रहा होगा-सितम्बर 1999 का माह ही बताया है व स्थान अटलांटिक महासागर का अफ्रीका व यूरोप से मिलता हुआ हिस्सा दर्शाया है।

एरिका चीटम ने अपनी पुस्तक 'दी फाइनल प्रोफेसीज ऑफ नोस्ट्राडेमस’ में भी यही लिखा है कि एक बड़ी भारी उल्का इस धूमकेतु के पूँछ से निकलकर पृथ्वी से आ टकरायेगी व इसके परिणाम सारी धरती के लिए अत्यंत भयावह होंगे। इस समय सारे भू-भाग में भूकम्पों की श्रृंखला आरंभ हो सकती है। नोस्ट्राडेमस ने इसके संकेत के रूप में ‘ग्रेट वन ऑफ रोम’ ईसाइयों के धर्मगुरु पोप की उस समय मृत्यु के रूप में इसे निरूपित किया है। वे लिखते हैं कि उस भयावह वेला में पृथ्वीवासी अंतरिक्ष में दो सूर्य एक साथ देखेंगे। मार्च 1996 में हायकूटेक नामक तथा अप्रैल 1997 में हैलीबाप नामक धूमकेतु हम लोग देख चुकें हैं। इनका आना एक खगोलीय घटना माना गया एवं अंतरिक्ष वैज्ञानिकों ने इन्हें अध्ययन की दृष्टि से देखा-सामान्यजनों ने अपने मनोरंजन की दृष्टि से इनका अवलोकन किया। सबसे चमकदार धूमकेतु अब तक का 1721 का रहा है। नोस्ट्राडेमस जब सितंबर में आने वाले धूमकेतु की तुलना सूर्य से करते हैं, वह भी आज से चार सौ वर्ष पूर्व तो वे जानते हैं कि वे क्या लिख रहे हैं व किस विभीषिका का वर्णन कर रहे हैं।

स्चुरी एक, क्वाट्रेन 61 में एक वर्णन इस घटना के परिप्रेक्ष्य में आता है कि एक घटना के परिप्रेक्ष्य में आता है कि एक पहाड़नुमा वस्तु धूमकेतु की पूँछ से आकर धरती से टकरायेगी व इस संभावित उल्का की अनुमानित परिधि सात स्टेडियम के बराबर अर्थात् पाँच हजार फीट के लगभग हो सकती है। ऐसी संभावना है कि इतनी बड़ी उल्का जब धरती, जो सूर्य के चारों ओर परिक्रमा कर रही है, से अनुमानतः 60 किलोमीटर प्रति सेकेण्ड की गति से टकरायेगी तो इससे जो ऊर्जा उत्पन्न होगी-वह लगभग 2000 मेगाटन टी.एन.टी. के बराबर होगी। हिरोशिमा पर गिरे परमाणु बम से उत्सर्जित ऊर्जा की मात्रा 15000 टन टी.एन.टी. भर ही थी। अनुमान लगाया जा सकता है कि उससे भी एक लाख तीस हजार से भी अधिक भयावह परिमाण भी अधिक भयावह परिमाण वाला व परिणाम लाने वाला विस्फोट आगामी सितम्बर में संभावित है। यह वर्णन डराने के लिए नहीं है, विगत भविष्यवाणियों की सत्यता के आधार पर नोस्ट्राडेमस की भविष्यवाणी की वैज्ञानिक अध्ययन कर फ्यूचरोलॉजिस्टों ने निकाला है। 30 जून, 1908 को, साइबेरिया की तुगुस्का नदी के ऊपरी तट पर 4 मील ऊँचाई पर एक उल्का के आकर फटने से साढ़े सात सौ मील क्षेत्र में हुए महाविनाश का भी इन वैज्ञानिकों ने अध्ययन किया है। उसका प्रभाव चीन के मध्य से लेकर सुदूर यूरोप लंदन तक में देखा गया था। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जो घटना सितम्बर में घटने वाली है-वह तुगुस्का से 600 गुना अधिक भयानक परिणाम लाने वाली हो सकती है।

हमारे घरों के आकार की छोटी-छोटी उल्काएँ प्रायः पचास की संख्या में प्रतिदिन पृथ्वी एवं चंद्रमा की कक्षा में से गुजरती रहती हैं। फिर घबराने की क्या बात है? क्यों डराया जा रहा है। अमेरिका के स्टेनफोर्ड रिसर्च सेण्टर के वैज्ञानिक का कहना है कि प्रायः विगत पचास वर्षों से जब से मनुष्य द्वितीय विश्वयुद्ध की विभीषिका देख चुका है-एक परमाणु बम विस्फोट से उसका समापन देख चुका है व तदुपरान्त अनेक राष्ट्रों द्वारा अणुयुद्ध की तैयारियाँ भी देख रहा है-हमें अंतरिक्ष से संदेश आ रहे हैं कि हम इन सब तैयारियों को रोकें। यूफाँलाँजीस्टों (यू से अनआइडेन्टीफाइड-अनजानी एफ से फ्लाइंग-उड़ने वाली, ओ से आँब्जेक्टस-वस्तुएँ अर्थात् उड़नतश्तरी विशेषज्ञों) के अनुसार हमें उड़नतश्तरियों के माध्यम से सबसे पहला संकेत तब से ही मिलना आरंभ हुआ है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हम अंतरिक्षवासी-हमारी हितैषी मित्र सभ्यताओं के संकेतों की उपेक्षा कर नोस्ट्राडेमस की बतायी भविष्यताओं का शिकार होने जा रहे हैं। वैज्ञानिकों का अनुमान है कि आज से प्रायः 650 लाख वर्ष पूर्व जब डायनोसोर्स धरती से गायब हुए थे तब जो उल्का पृथ्वी से टकराई थी, उसके प्रभाव से 100 मिलियन मेगाटन ऊर्जा (टी.एन.टी) निकली थी। संभावित चर्चित घटनाक्रम से यह पचास हजार गुना अधिक तीव्रता की टकराहट थी। कल्पना की जा सकती हैं कि इतना भी कुछ यदि पृथ्वी के साथ घटित होता है, तो उसके अपनी कक्षा से खिसक जाने से लेकर शाँत प्रसुप्त पड़े ज्वालामुखियों का फूटना अंतरिक्षीय तापमान में वृद्धि-वैचारिक स्तर पर संव्याप्त दूरचिंतन की आँधियों से विश्वयुद्ध व अराजकता का दौर-सभी कुछ संभव है।

विज्ञान के चरम शिखर पर पहुँच चुका मानव जब कंप्यूटर युग में आकर अपनी उपलब्धियों को देखता है, तो गर्वोन्मत्त हो उठता है, परंतु विगत पचास वर्षों में हुए घटनाक्रम व अभी विगत बारह वर्षों से सतत् घटित हो रहे अप्रत्याशित परिवर्तन बताते हैं कि हम एक विलक्षण संधिवेला से गुजर रहे हैं। सूर्य का अशाँत-कुपित होना व उल्काओं के धरती से टकराने की संभावनाओं से डरना तो नहीं चाहिए, पर इनसे एक संदेश तो लेना ही चाहिए कि हम सामूहिक साधनात्मक पराक्रम की ओर बढ़ें-जीवनशैली में परिवर्तन लाएँ-अपने प्रयास-पुरुषार्थ के साथ विवेक जोड़ें, यदि ऐसा नहीं किया तो महामरण, सामूहिक विनाश निश्चित है।


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