आसमा हैरी नाम के सुविख्यात संत एक बार एक गली से जा रहे थे। इसी समय किसी ने उन पर अचानक ऊपर से राख भरी थाली उलट दी। संत ने अपने वस्त्र झाड़े और ईश्वर का धन्यवाद देने लगे। उनके शिष्यों ने यह देखा तो वे बोले, आपके ऊपर तो किसी दुष्ट ने राख डाल दी और फिर भी आप ईश्वर को धन्यवाद दे रहे हैं? इस समय धन्यवाद किसलिए?
संत ने अपने शिष्यों की ओर देखा और बोले, मैं तो अग्नि में जलाए जाने के योग्य था, किन्तु ईश्वर ने दया कर के राख से निर्वाह कर दिया। ऐसे में उन्हें धन्यवाद न दूँ तो क्या दूँ? शिष्य उनकी विनम्रता एवं ईश्वर परायणता को देखते ही रह गए।
तब मिश्र में नकिबेन का राज्य था। उनके सत्य आचरण से मनुष्य ही नहीं देवता भी बहुत प्रसन्न थे। एक दिन नील देवता ने प्रकट होकर उन्हें दर्शन दिए। इसी के साथ वह राजा को तलवार देते हुए बोले-यह तलवार लो। इसे लेकर तुम विश्वविजयी होंगे।
राजा ने कहा- भगवन्! मुझे तलवार की कोई जरूरत नहीं। विश्व को विजय करके मैं क्या पाऊँगा?
देवता ने कहा- अच्छा तो यह पारस पत्थर ले लो। इससे तुम्हारे पास देवताओं से भी अधिक धन प्राप्त होगा।
राजा बोला, भगवन्! मुझे यह पारस पत्थर भी नहीं चाहिए। इतना धन प्राप्त कर मैं आखिर करूँगा क्या?
देवता ने कहा- तो फिर स्वर्ग की सबसे सुन्दर अप्सरा ले लो। राजा ने उसके लिए भी मना कर दिया।
अन्त में नील देवता ने कह- अच्छा तो ये फूल का पौधा ले लो। यह जहाँ उगेगा वहाँ जड़-चेतन मित्र-शत्रु सभी सुगन्ध से भर जाएँगे।
इस पर राजा ने कृतज्ञतापूर्वक वह पौधा ले लिया। देवता ने राजा को आशीर्वाद दिया और अन्तर्ध्यान हो गए।
निस्संदेह भोग-विलास की वस्तुओं से वह संपदा श्रेष्ठ है, जिससे सभी को प्रसन्नता मिल सके।