(पूर्वार्ध)
गायत्री मंत्र हमारे साथ-साथ
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात्।
देवियो, भाइयो!
भगवान की समीपता और कृपा पाने के लिए जिन दो कार्यों की आवश्यकता होती है, उनका विवेचन हम इन शिविरों में करते आ रहे हैं। इन सबका एक ही उद्देश्य है कि आप लोग जो यहाँ आये, अब यहाँ से जाने के साथ-साथ भगवान के साथ रिश्ता मजबूत बनाते हुए जाएँ। रिश्ता मजबूत करने के साथ-साथ उनकी कृपा भी प्राप्त करें। भगवान का रास्ता अपनाना केवल धार्मिक कर्मकाण्ड ही नहीं है, केवल परलोक की तैयारियाँ ही नहीं है, मरने के बाद मुक्ति या स्वर्गलोक प्राप्त करने का आधार ही नहीं है, बल्कि इसी जीवन में सुख और शान्ति से ओत-प्रोत होने का रास्ता है। मरने के बाद स्वर्ग मिलेगा या नहीं? यह हम नहीं जानते, लेकिन इसी जीवन में स्वर्ग स्थापित कर सकते हैं, आध्यात्मिक साधना के मार्ग पर चलते हुए।
मित्रो, साधना नकद धन है, यह उधार नहीं! कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनका परिणाम तुरंत मिलता है, लेकिन कुछ चीजें ऐसी होती हैं जिनका परिणाम तुरंत नहीं मिलता। विद्या पढ़ने का परिणाम शायद तुरंत ही मिल जाता है। गलत काम करने के परिणाम देर से मिलें, लेकिन अपने दोष और दुर्गुणों के परिणाम तुरंत ही मिल जाते हैं। इसी तरीके से अध्यात्म एक ऐसी प्रक्रिया का नाम है, जो मनुष्यों को तुरंत लाभ प्रदान करती है, जिसका परिणाम तुरंत मिलता है।
आज हमारे पास नकली अध्यात्म है। नकली अध्यात्म से परिणाम प्राप्त करने में देर लगती है और लम्बा इंतजार करना पड़ता है, देर तक प्रतीक्षा करनी पड़ती है और यह उम्मीद लगानी पड़ती है कि हमारी मौत आयेगी और भगवान के यहाँ जायेंगे और अध्यात्म का परिणाम इस तरीके से मिलेगा।
स्वर्ग के बारे में यह ख्याल है कि कोई स्थान विशेष है, जगह विशेष है। हमारे ख्याल से जहाँ तक हम समझ पायें हैं कि किसी स्थान का जगह का नाम स्वर्ग नहीं है! बल्कि स्वर्ग आँखों से देखने का एक तरीका है। जैसे फोटोग्राफ लिए जाते हैं। किसी आदमी का अगर हम सामने से फोटोग्राफ लें तो उसकी आँखें, नाक, कान दिखायी देंगे, चेहरा दिखायी देगा और हँसता हुआ मनुष्य दिखायी देगा, अगर पीछे से किसी आदमी का फोटोग्राफ लें तो उसके बाल और पीठ दिखायी देगी। उसमें नाक, कान, आँखें, मुँह कुछ भी दिखायी नहीं देता है। फोटोग्राफ आ गया, यह किस आदमी का है, पता ही नहीं। क्योंकि उसकी मूँछें-दाढ़ी तो हैं ही नहीं। उसका चेहरा तो है ही नहीं, माथा तो है ही नहीं, लेकिन इसका मतलब ये तो नहीं कि उसके यह सब चीजें नहीं हैं। पीछे से फोटोग्राफ लेने के कारण ये सब चीजें दिखायी नहीं पड़तीं। दुनिया भी ठीक इसी प्रकार से है। हमारा जीवन और समस्याएँ भी इसी प्रकार से हैं और परिस्थितियाँ भी ठीक इसी प्रकार की हैं। जब हम इन सबको देखने का तौर-तरीका या नजरिया बदलते है, तो हमें अपनी समस्याएँ, विपत्तियाँ दिखायी पड़ती हैं और जब चीजें उल्टी-पुल्टी दिखायी देती हैं। हमें अपने जीवन में अभाव मालूम पड़ते हैं।
एक आदमी था, जो कह रहा था कि यह अभागा गुलाब ऐसी परिस्थिति में पैदा हुआ कि इसके भाग्य फूट गये। काँटों में पैदा हुआ, क्या कर्म में लिखा कर लाया? जहाँ इसका जन्म हुआ वहाँ काँटे ही काँटे। दूसरा आदमी कह रहा था-कैसे भाग्यवान काँटे हैं कि गुलाब के साथ पैदा हुए। क्या सुंदर गुलाब है जो काँटों में उगा है। गुलाब कितना सौभाग्यशाली है जो कि काँटों के साथ जुड़ा है। यह देखने का तरीका है। जो लोग जीवन को उल्टे तरीके से देखते हैं अनेकों अपना जीवन कठिनाइयों से अभावों से, संकटों से, विपत्तियों से भरा मालूम पड़ता है। वैसे हमारे सुखों में अभाव नहीं है, हमारी शाँति में अभाव नहीं है। लेकिन जब हम आसमान की ओर देखते हैं। तब हमको बहुत मुसीबत मालूम पड़ती है। हमारा बड़ा वाला अफसर दो हजार रुपये कमाता है और हमको पाँच सौ पचास रुपये भेजता है। बड़ा क्लेश होता है, ईर्ष्या होती है कि बड़ा अफसर हमारे घर के पास रहता है। कितना बढ़िया मकान, मोटरकार, नौकर-चाकर और हमारे पास साइकिल है। हम कहीं भी जाते हैं, तो साइकिल से जाते हैं। कोठरी में रहते हैं। हम कभी देखें तो दुनिया में हमसे भी ज्यादा परेशान, दुखी लोग हैं। धिक्कार है हमारा जीवन, जो हम दुखी होते हैं। हमसे भी ज्यादा दुखी वे लोग हैं, जो झोंपड़–पट्टी में रहते हैं, जिनके पास पहनने को कपड़े नहीं हैं, खाने को अन्न नहीं है। किसी दिन नौकरी मिल जाती है और किसी दिन नहीं! यदि उनके साथ मुकाबला करें तब हमको मालूम पड़ेगा कि हमारे सुखों का कोई ठिकाना नहीं है। हम बहुत सुखी हैं।
मित्रो, सुख कोई वस्तु नहीं है। लोगों के देखने का दृष्टिकोण का नाम ही सुख है। लोगों का ख्याल है कि जिसके पास धन-संपत्ति नौकर-चाकर कार-बंगला आदि है वही सुखी होते हैं। नहीं यह बात गलत है। हमारा संपत्ति वाले लोगों से बहुत मिलना-जुलना रहा है। संपत्ति वाले सामान्य व्यक्ति की अपेक्षा कहीं अधिक दुखी और परेशान नजर आते हैं। केवल हमें मालूम पड़ता है कि ये लोग सुखी हैं। हम भी वही चीजें पाने की कोशिश करते हैं, नकल करते हैं, लेकिन जब इनका दिल खोलकर देखा जाए, समझने की कोशिश की जाए, तो इन्हें सामान्य आदमी से भी ज्यादा दुखी पाते हैं।
हेनरी फोर्ड संसार का सबसे बड़ा आदमी जब मरने लगा तो उसने अपनी डायरी में एक वृत्तांत लिखा कि मैं अपनी फैक्टरी में काम करने वाले मजदूरों को मोटी-मोटी रोटियाँ खाता हुआ देखता हूँ तो मुझे ईर्ष्या होती है, डाह होती है कि मैं हेनरी फोर्ड संसार का सबसे धनी व्यक्ति, पर मुझे कभी नींद नहीं आयी। मुद्दतों से सोया नहीं, खाना भी कभी हजम नहीं हुआ। उन्होंने लिखा- हे भगवान! जब मुझे मौत आये और मैं दुबारा जन्म लूँ तो मैं चाहूँगा कि मुझे इसी फैक्टरी में लोहा काटने का काम मिल जाये। मैं मजदूरों के साथ काम करूँ। छड़ी चलाऊ तथा हथौड़ा चलाता रहूँ, ताकि मेरा पेट ठीक से काम करे, मुझे नींद अच्छी आये। हेनरी फोर्ड समझता था कि सबसे सुखी व अमीर आदमी हैं और मजदूर समझते थे कि हेनरी फोर्ड सबसे अमीर व सुखी आदमी है। इसी तरीके से दोनों एक दूसरे को सुखी व अमी आदमी समझते थे। कौन सुखी और कौन दुखी है जहाँ तक हम समझते हैं कि यह मनुष्य के ख्याल हैं, जो उसे सुखी व दुखी बनाते हैं।
एक था मल्लाह और एक था उसका पुत्र। दोनों एक बड़ी नाव पर सवार होकर समुद्र में उसे खेते हुए जा रहे थे। थोड़ी देर बाद तूफान आया और नाव डगमगाने लगी। मल्लाह ने अपने बेटे से कहा कि ऊपर जा और अपनी पाल को ठीक से बाँध दे। पाल को अगर ठीक से बाँध दिया जाएगा तो हवा का रुख धीमा हो जाएगा और हमारी नाव डगमगाने से बच जायगी। बेटा बाँस के सहारे ऊपर चढ़ गया और पाल को ठीक तरीके से बाँधने लगा। उसने जब ऊपर की ओर देखा तो उसे चारों तरफ समुद्र की ऊँची लहरें दिखायी दे रहीं थीं। जोरों से हवा चल रही थी। सब ओर सुनसान नजर आ रहा था। अँधेरा छाता जा रहा था। कोई भी व्यक्ति दूर-दूर तक दिखाई नहीं दे रहा था। यह सब देखकर बेटा चिल्लाया-पिताजी मेरी तो मौत आ गयी, देखिये दुनिया में प्रलय होने जा रही है।” तब उसका पिता चिल्लाया-बेवकूफ सिर्फ नीचे की ओर नजर रख और इधर-उधर मत देख।” बाप उस वक्त हुक्का गुड़गुड़ा रहा था। बेटा नीचे चला आया।
अपने बेटे की तरफ हुक्का बढ़ाते हुए उसने कहा कि अपने से ऊपर देखने वाले महत्त्वाकाँक्षी व्यक्ति दिन-रात जलते रहते हैं। लोकैषणा, वित्तैषणा और पुत्रैषणा वाले मनुष्यों की कामनाएँ असीम और अपार हुआ करती हैं। ऐसे व्यक्ति को न शाँति मिलने वाली है और न मुक्ति। मनुष्य का जीवन शाँति वाला होना चाहिए, उन्नतिशील-प्रगतिशील जीवन होना चाहिए, अशाँत और विक्षुब्ध नहीं, लेकिन यह सब नहीं होता।
मित्रो, दोनों चीजें मालूम तो पड़ती हैं एक समान, लेकिन इन दोनों में जमीन-आसमान का अंतर है। जीवन में उन्नति करना एक बात है और प्रगति करना दूसरी बात। इसके लिए आदमी को धैर्य, साहस, मुसकराहट, संतुलन, परिश्रम की जरूरत है। इन पाँचों के सहारे उन्नति के रास्ते खुलते हुए चले जाते हैं और मनुष्य प्रगति करता हुआ चला जाता हैं। जो छोटे-छोटे आदमी आगे बढ़ें हैं और सफलताएँ पायीं हैं, भौतिक और आध्यात्मिक शक्तियाँ प्राप्त की हैं। उनके संबल और सहारे रहे हैं-संतोष उत्साह, परिश्रम, संतुलन। इन चीजों के द्वारा ही वे आगे बढ़ें हैं। लेकिन जिन्होंने अपने आप को आकांक्षाओं की आग में जलाना शुरू किया कि हमको ये नहीं मिला, हमको वह नहीं मिला, हम तो मर जाएँगे, ये करेंगे, वो करेंगे। जो व्यक्ति परिश्रम से घबराते रहे, बड़बड़ाते रहे, जिन्होंने अपना सारा का सारा मानसिक संतुलन खो दिया, वे जीवन में क्या कुछ प्राप्त कर सकेंगे? जो वस्तुओं में शाँति की तलाश करते रहेंगे, वे अपने गिरह की भी शाँति खो बैठेंगे।
मित्रो! अध्यात्म जीवन जीने की प्रणाली है, जीवन जीने की प्रक्रिया है। मरने के बाद स्वर्ग मिलता है कि नहीं, यह मैं नहीं जानता, लेकिन मैं यह जानता हूँ कि आध्यात्मिकता के सिद्धांतों को यदि हम जीवन में समाविष्ट कर सकते हों तब, हमारे चारों ओर स्वर्ग बिखरा हुआ दिखाई पड़ेगा। तस्वीर खींचने का यदि हमको सही ढंग मालूम हो तो हम इस दुनिया की बेहतरीन तस्वीरें खींच सकते हैं और अपने आप की भी। हमारी भी तस्वीरें बेहतरीन है, लेकिन यदि हमने दुनिया की खराब वाली तस्वीर देखना शुरू किया, अपना कैमरा कहीं गलत जगह पर फोकस कर दिया तब हमको क्या चीजें मिलने वाली हैं? तब सबसे ऊपर की शक्ल या सिर आएगा या फिर पैर आएगा और यदि उसी आदमी को बैठाकर फोटो खींचेंगे तो मालूम पड़ेगा कि कोई लम्बा-लम्बा भूत खड़ा हुआ है। कैमरे को लेन्स वही है, जिससे आपने व्यक्ति को सामने खड़ा करके फोटो लिया था। कैमरे का लेन्स वही है, जिससे आपने व्यक्ति को सामने खड़ा करके फोटो लिया था। कैमरे को लेन्स वही है जो आपने पीठ पीछे से लिया हैं, खड़ा करके। आपको दुनिया का नहीं, अपने अंतरंग जीवन का फोटो लेना है और उसके आधार पर अपनी शाँति, सुख, समृद्धि का मूल्याँकन करना है। अध्यात्म को अपने जीवन का अंग बनाना है।
साथियो! आध्यात्मिकता एक फिलॉसफी है- एक दर्शन है, सोचने-समझने की प्रणाली है, जीवन जीने की कला है। हमें अपनी समस्याओं के बारे में सोचना है। यदि हमारा विचार करने का क्रम ठीक हो तो हम आपको आशीर्वाद दे सकते हैं कि आपका जीवन सुखों से भरा हुआ हो, आप प्रसन्न रहें, उन्नति से भरा हुआ हो सकता है, यदि आपको सही ढंग से देखना आता हो तब। मान लीजिये किसी के कुटुम्बी की मौत होने वाली है। ठीक है आपको अपना भाई-भतीजा चाचा-ताऊ दादा-दादी प्यारे थे, लेकिन दूसरों को भी आवश्यकता है-अपने भाई-भतीजों को गोद में खिलाने की। यदि हम उनको चिपकाकर रखेंगे तो किसी के घर ढोलक कैसे बजेगी? मिठाई कैसे बाँटी जाएगी? कोई माँ अपने लाल को कैसे धन्य होगी? एक का आनंद-दूसरे का शोक, एक का नफा दूसरे का नुकसान-यही दुनिया का क्रम है।
यदि हमारे विचार करने का क्रम सही हो जाए तब हमें बढ़िया से बढ़िया चीजें देखने को मौका मिलेगा। यदि इन आँखों का लेन्स बदल दिया जाय और उस लेन्स से हम चीजों को देखें जो देखने लायक है जो मजा आ जाएगा। हमारे पड़ोस में ब्लॉक बनाने वाला रहता है। उसके पास कई तरह कई तरह के कैमरे रहते हैं। हम उससे तस्वीरें बनवाते रहते हैं। उसके पास कई रंग मिले रहते हैं। उसके पास कई रंग के ब्लॉक है, जिनसे वह तरह-तरह के रंगों से रंग-बिरंगे चित्र तैयार कर लेता हैं। अलग-अलग तस्वीर की अलग-अलग प्लेटें तैयार करता है और सुंदर चित्र छाप देता है।
इसी तरह मित्रों! मनुष्य के भीतर दुष्टताएँ, कमियाँ, बुराइयाँ और मूर्खताएँ होती हैं, लेकिन दुनिया में कोई भी मनुष्य इस तरीके का नहीं बनाया गया हैं, जिसके अन्दर कमियाँ ही कमियाँ हों, बुराइयाँ ही बुराइयाँ हों। ऐसा इनसान हमने आज तक नहीं देखा कि जिसमें सिर्फ कमियाँ और बुराइयाँ ही हों, अच्छाइयाँ न हों। कसाई के भीतर भी अच्छाई होती है। वह भी अपने बच्चों से प्यार करता है। डाकू के भीतर भी विशेषता होती है और वह है उसका-साहस डकैती के कारण उसको परलोक में दंड मिलता है, उसको जेल जाना पड़ता है। वह लम्बी-लम्बी सजाए भुगतता है। लेकिन उसके साहस के कारण उसको यश भी मिलता है, पैसा भी मिलता है। रात में जंगलों में घुसने पर जब हमको भय का भूत सताता है, तब वह अपने कंधे पर बंदूक रखकर लंबे-लंबे डग भरता है। यह उसकी विशेषता है।
मित्रों! हर मानव विशेषताओं से भरा हुआ है। हमारे देखने वाले आँखों के लेन्स यदि सही हों, खींच लेते है, जैसा कि हमारे पड़ोस में रहने वाला फोटोग्राफर हर ब्लॉक को अलग निकाल लेता है, लाल रंग को अलग निकाल लेता है-पीले रंग को अलग निकाल लेता है, लाल रंग को अलग कर सकता है, तो हममें से हर मनुष्य यदि अच्छाइयों को देखना शुरू करे और अच्छाइयों को ही प्रोत्साहन दे, अच्छाइयाँ बढ़ाने का प्रयत्न करे, तो सर्वत्र अच्छाइयाँ बढ़ाने का प्रयत्न करे, तो सर्वत्र अच्छाइयाँ ही अच्छाइयाँ नजर आएँगी।
आप कहेंगे कि बुराइयों से कैसे लड़ा जाएगा, उनको कैसे खत्म किया जाएगा? बुराइयों से लड़ने के बहुत से तरीके हैं। उनमें से एक तरीका यह है कि उस पर लाँछन लगा करके तथा मारपीट करके व गाली-गलौज करके उसको अपमानित करते हैं। अपमानित करने के बाद में उसे ढीठ बनाते हैं। दूसरा तरीका बुराइयों को दूर करने का यह है कि हम अपने आपको सुधारें। अपने को सुधारने के लिए बड़े-से बड़े काम किये जा सकते हैं। कुशल डॉक्टर अपना तेज चाकू ले आता है और बड़े प्यार से मोहब्बत से मरीज के कभी पेट पर चलाता है, तो कभी टाँग के ऊपर, तो कभी सिर के ऊपर चलाता है। जगह-जगह चाकू चलाता रहता है और आपरेशन चलता रहता है। परंतु यह सब कुछ वह बिना गुस्से के करता है, बिना घृणा के चाकू चलाता है। डॉक्टर के ऊपर आप मुकदमा नाहीं चलाते, उसको सजा नहीं दिलाते, क्योंकि वह आपकी जान बचाता है। पेट में छुरा घोंप देने वाले, मारने वाले को दस साल की सजा हो जाती है, लेकिन आपरेशन करने वाले, चाकू चलाने वाले डॉक्टर की तरक्की की जाती है। यह सब नीयत का कमाल है। नीयत अच्छे व्यवहार के लिए भी की जाती है और इसी आधार पर अच्छे लोगों को बदनाम भी किया जा सकता है।
मित्रो! यदि हम सबका दृष्टिकोण बदल जाय तो तो क्या से क्या हो सकता है? बेलनगंज,
जो कि आगरा शहर का एक मोहल्ला है, वहाँ के एक सम्पन्न व्यक्ति को पन्द्रह दिन से नींद आनी बन्द हो गयी। साथ ही साथ उसे ऐसी शिकायत हो गयी कि दिमाग की नसें फटने लगीं और ऐसा लगने लगा कि उसकी मौत हो जाएगी। आँखें बिलकुल लाल-लाल हो गयीं। यह सब लक्षण देखकर घरवालों की लगन लगी कि सचमुच उसकी मौत हो जाएगी। पंद्रह दिनों से नींद न आने के कारण उसका बुरा हाल था। किसी ने कहा था कि मथुरा में एक आचार्य जी रहते हैं, उनके पास जाने से कई आदमी अच्छे हो गये हैं, तुम भी उन्हीं के पास चले जाओ। इससे पूर्व उन्नाव की एक महिला, जो एक तहसीलदार की पत्नी थीं, और वही प्रिंसिपल थीं, आयी। उस स्त्री का बुरा हाल था। वह खूब रोया करती थी। किसी ने उससे कहा कि आचार्य जी के पास मथुरा चली जाओ। वह मेरे पास आयी। मैंने उसके सिर पर पट्टी बाँधी और वह बैठे-बैठे वहीं तख्त पर सो गयी। ऐसे ही किस्से-कहानियाँ किसी ने उसे सुना दिये थे। वजह ठीक होकर चली गयी।
हाँ तो आगरा वाले व्यक्ति को लोग मेरे पास लाये और कहा कि इनको पंद्रह दिन में नींद नहीं आयी है। आँखें सूजकर लाल हो गयीं हैं। नसें फटी जा रही हैं। अगर इनको नींद नहीं आयेगी तो यह मर जाएँगे। महाराज जी इनका इलाज किया जा सकता है और इन्हें अच्छा भी किया जा सकता है। उनके साथ आये हुए लोगों को हमने दूसरे कमरे में भेज दिया। फिर उनसे पूछा कि क्या बात है? उन्होंने कहा कि क्या बात है? उन्होंने कहा कि हमारे साथ एक काण्ड हो गया है। हमारे घर में इनकम टैक्स अफ़सर ने छापा मारा था, जिसमें दो बही-खाते ले गये थे। यह सब हमारे मुनीम ने कराया था। उसने जाकर अफ़सर को बताया और अपने साथ सेल्स टैक्स अफ़सर को बताया और अपने साथ सेल्स टैक्स अफ़सर व इनकम टैक्स अफ़सर को ले आया। छापा मारने के बाद में हमारे दोनों बही-खातों को पुलिस ले गयी। उसके बाद हमारे ऊपर केस चलाया गया। हमारी गिरफ्तारी हुई। अब हम जेल से छूट गये हैं, लेकिन हमको भय लगता है कि अब न जाने क्या होने वाला है। अब हमारा क्या होगा?
यह सब सुनकर मैंने राहत की साँस ली और कहा कि आप थोड़ी देर आराम से बैठ जाइये। आपकी बीमारी तो दूर हो जाएगी, लेकिन इसके साथ-साथ हम आपको इस मुकदमें से छुटकारा दिलाना चाहते हैं। वह हँसने लगा कि कैसे दिलायेंगे। मैंने पूछा-अच्छा बताइये आपके असली और नकली बहीखाते में वास्तव में कितने खर्चे का अंतर है? उन्होंने कहा दस लाख रुपये करीब का अंतर है। फिर पूछा-अगर आपको इनकम टैक्स देना पड़े तब कितना नुकसान भरना पड़ेगा। उन्होंने कहा कि करीब बीस लाख रुपये का अंतर है। हमें बीस लाख रुपये देने पड़ेंगे। मैंने उनसे सहानुभूति जताई और कहा आपके पास क्या-क्या सामान है तथा कितनी संपत्ति व जायदाद है? वह कागज-पेन्सिल लेकर बैठ गये और नोट करने लगे। उन्होंने बताया कि फैक्टरी व उसमें लगी मशीनों तथा बैंकों में जमा पैसा, इधर-उधर की लेने-देन का, सब मिलाकर कोई पचास लाख रुपये की संपत्ति है। हमने कहा कि अगर इसमें से बीस लाख निकाल दिया जाय तो कितना रुपया बचेगा? उनने कहा-तीस लाख।
मैंने कहा कि मेरे पास तो तीस पैसे भी नहीं हैं, फिर भी देखिये क्या मौज की जिंदगी जीता हूँ। मान लीजिए अगर गवर्नमेन्ट आपके बीस लाख रुपये ले लेती है, तो भी आपके पास तीस लाख बचे रहते हैं। तीस लाख रुपये किसे कहते हैं? तीस लाख रुपये के तीस हजार प्रति लाख रुपये के तीस हजार प्रति महीने ब्याज होगा। आप जब मुकदमें से छूट जाएँ और बीस लाख जुर्माना चुका दें तब आप मुझे बुला लेना। आपका जो बचा हुआ पैसा है, उससे आपको एक क्वार्टर दिला देंगे। और शेष रुपये बैंक में जमा करा देंगे। आपको तीस हजार रुपये महीने की आमदनी उससे मिलती रहेगी और आप घर बैठे आनन्द किया करेंगे। बात उनकी समझ में आ गयी। जब मैंने उनसे पूछा कि आपका महीने में कितना खर्च करने के बाद आपके पास कितना बच रहता है? पच्चीस हजार। मैंने कहा कि पच्चीस हजार रुपया एक महीने में बच जाता है तो साल भर में कितना हो जाएगा? उनने कहा-तीन लाख रुपये। अगर आप इतना रुपया सात-आठ साल तक बचाये तो कितना रुपया हो जाएगा? उनने कहा-तीस लाख रुपये। मैंने कहा कि अगर गवर्नमेंट आपका बीस लाख रुपये ले ले तो आपका क्या हर्ज होगा? आप सोच लीजिए कि सात-आठ साल तक आपने कमाया ही नहीं। वह मुस्कराने लगा। फिर मैंने उसे माताजी के पास भेज दिया। मैंने पूछा कि क्या आप पतली रोटी खाते हैं? आप माताजी के हाथ की रोटियाँ खाइए, मोटे हो जायेंगे। उस रात उसे पूरी नींद आयी। लोगों ने कहा-क्या आप इनसे जप वगैरह कराएँगे? मैंने कहा-नहीं उसके जाने के बाद घरवालों की चिट्ठियाँ आयीं कि न जाने आपने कौन-सा मंत्र फूँक दिया है कि वह अब एकदम स्वस्थ व प्रसन्नचित्त हैं।
मित्रो! यदि हमारे सोचने का, देखने का ढंग बदल दिया जाय तो जीवन में आनंद और उल्लास आ जाएगा। लोग मरने के बाद स्वर्ग का, मुक्ति का ख्वाब स्वर्ग देखने की इच्छा कम से कम मेरे जैसा पसन्द नहीं करेगा। मुसलमानों के स्वर्ग के बारे में मैंने पढ़ा कि वहाँ पर शराब की नहरें बहती रहती हैं। जब पीना हो तो शराब। मुसलमानों की जन्नत में सत्तर हूर व बहत्तर गुल में हैं, जो सेवा करते हैं। मित्रों, अगर हमको इस तरीके की जन्नत मिल जाये तो मैं मर जाऊँगा। अगर कोई आदमी रेलगाड़ी में बीड़ी पीता है, तो मैं अपना सिर खिड़की से बाहर निकाल लेता हूँ, लेकिन जहाँ सब लोग शराब पीते हों, ऐसी जन्नत में जाकर मैं क्या करूँगा। जिस जन्नत में हूरों के, अप्सराओं के नाच-गाने चलते हों, ऐसी जगह जाना मैं कभी पसन्द नहीं करूँगा।
हिंदुओं के स्वर्ग के बारे में भी मैंने पढ़ा है कि वहाँ इंद्र का दरबार लगा रहता है और सुबह से शाम तक नाच-गाना ही चलता है। ऐसा स्वर्ग देखने की जरूरत होगी, खाने के लिए बढ़िया-बढ़िया चीजें होगी और घूमने के लिए मोटर कारें होंगी तो मैं अशोका होटल, नटराज होटल चला जाऊँगा। दो सौ रुपये रोज का फ्लैट लूँगा, पैसे कमा कर लाऊँगा और खूब मौज करूँगा। जब ऐसा स्वर्ग मुझे इसी जिंदगी में धरती पर मिल सकता है, तो फिर मैं मरने का इंतजार क्यों करूँ। यदि इसी का नाम स्वर्ग है, खाने-पीने की सुविधा का नाम, नाच-रंग देखने का नाम स्वर्ग है, तो वह स्वर्ग तो यहीं पर है। कम से कम मेरे जैसा आदमी जिसने परिश्रम से प्यार किया है, जिसे पसीना बहाये बिना नींद नहीं आती। जो आदमी श्रम के बिना, सेवा के बिना, सहानुभूति के बिना जिन्दा नहीं रह सकता, ऐसा पाया है मैंने मन। मुझे तो उस स्वर्ग से भागना पड़ेगा और कहना पड़ेगा कि कृपा करके मुझे यहाँ से विदा कर दीजिये। क्योंकि मुझे गरीब, पिछड़े, असहाय लोगों की सेवा करनी है। क्रमशः