स्वामी विशुद्धानन्द जी, जो प्रख्यात गायत्री उपासक व सूर्य विज्ञान के ज्ञाता रहे हैं, ज्ञान विज्ञान के अपने अनुभवों को प्रत्यक्ष चमत्कारों के रूप में यदाकदा दिखा दिया करते थे। ब्रह्म की नाभि में से कमल उत्पन्न हुआ कि नहीं इस पर भक्तों में चर्चा चलने पर उनने एक बार अपनी नाभि में से कमल उत्पन्न करके दिखा दिया था। उनने कहा कि सविता विज्ञान के समक्ष आज का विज्ञान तो बौना है व इतना कहकर गायत्री जप करते-करते वे लेट गए। नाभि के स्थान को स्पर्श करते ही वह रक्तिम लाल हो उठा व उसमें से धीरे-धीरे एक डेढ़ फुट लम्बा कमल नाल निकला जिसके सिर पर अत्यन्त सुन्दर कमल पुष्प था। उसकी गंध से पूरा कमरा सुगन्धित हो उठा। बाबा बोले अभी सूर्य का तेज कम है, नहीं तो यह कमल छत तक भी पहुँच सकता था। थोड़ी देर याद वही कमल नाल सहित वापस नाभि प्रदेश में चला गया।
योगीराज ने बाद में चर्चा करते हुए इसे गायत्री साधक की संकल्प शक्ति का चमत्कार बताया।
अनुशासन व नीति निर्धारण के।
अपने इस युग की सभी विकृतियाँ अपेक्षाकृत अधिक गहरी हैं। अनास्था से जूझने के लिए अंतराल का परिशोधन व जनमानस का परिष्कार ही सभी समस्याओं का समाधान निकाल सकता है। उज्ज्वल भविष्य के निर्धारणों का यही केन्द्र बिन्दु है। ब्राह्मीचेतना का अवतरण अगले दिनों अनास्थाओं का उन्मूलन व आस्थाओं का आरोपण करता देखा जा सकेगा। हम सब उसे देखेंगे, यह हमारा सौभाग्य है। सूक्ष्मजगत में कोलाहल मचाने वाली युगचेतना प्रज्ञावतार की ही है, यह सुनिश्चित माना जाना चाहिए।
“युग शक्ति गायत्री” की अवतरण परम्परा में सर्वप्रथम वेदमाता स्वरूप ब्रह्माजी के माध्यम से प्रकट हुआ। भावना के सात अवतार सात व्याहृतियों के रूप में प्रकट हुए जो सात ऋषियों के नाम से विख्यात हुए। युग परिवर्तन के चक्र में इनके बाद नौवाँ सबसे पिछला अवतार विश्वमित्र ऋषि के रूप में हुआ, जिन्हें नूतन सृष्टि का सृजेता कहा जाता है। प्रस्तुत गायत्री मंत्र के विनियोग उद्घोष में गायत्री छन्द, सविता देवता एवं विश्वामित्र ऋषि का उल्लेख होता है। अस्तु अब तक के युग में विश्वामित्र ही नवम अवतार हैं। अवतारों की शृंखला का यह वर्णन परम्परागत दशावतार जिनकी प्रारंभ में व्याख्या की गयी है, से कुछ भिन्न भले ही जान पड़ता हो, पर है यह अलंकारिक विवेचन शास्त्रोक्त तथा आज की परिस्थितियों के परिप्रेक्ष्य में ही।
इस प्रकार ब्रह्माजी के माध्यम से वेदमाता का अवतरण हुआ-वेदमाता अर्थात् सद्ज्ञान की अधिष्ठात्री देवी। सप्तर्षियों के माध्यम से देव माता का आविर्भाव हुआ। देवमाता अर्थात् देव संस्कृति की जन्मदात्री, देव वृत्तियों का पोषण करने वाली देवी। ब्रह्मर्षि विश्वामित्र के माध्यम से विश्व माता का अवतार हुआ। विश्वमाता अर्थात् सुसंस्कृत और समुन्नत विश्व का निर्माण करने वाली, सारी वसुधा को एक कुटुम्ब बना देने वाली शक्ति गायत्री का निष्कलंक प्रज्ञावतार का होने वाला है। तमिस्रा का निराकरण एवं उज्ज्वल भविष्य का शुभारंभ इसी दिव्य भावना के साथ प्रादुर्भूत होता हुआ हम सब इन्हीं चर्मचक्षुओं से अगले दिनों प्रत्यक्ष देख सकेंगे।