पौराणिक आख्यान के अनुसार भद्रदेश के राजा अश्वपति संतानहीन थे। भगवती गायत्री की साधना की प्रेरणा उन्हें महर्षि पाराशर ने दी। पूर्ण विधि-विधान से दोनों पति-पत्नी ने अनुष्ठान किया तो रानी की इच्छानुसार उन्हें सावित्री के रूप में कन्या की प्राप्ति हुई। सर्वांग सुन्दर युवती सावित्री का विवाह राजा द्युमत्सेन के पुत्र सत्यवान से हुआ। जंगल में यज्ञ हेतु ईंधन लेने गए सत्यवान की जब अकाल मृत्यु हो गयी तो सावित्री ने अपनी गायत्री साधना के आधार पर यमराज को भी उसकी विनती सुनने पर विवश कर दिया। पति निष्ठा से प्रसन्न यमराज ने सावित्री को पति की प्रिय पत्नी बनने तथा पुत्रवान् बनने का आशीर्वाद दिया। इन सब वरदानों के बाद यमराज को उस सत्यवान को पुनर्जीवित करना पड़ा जिसकी आयु पूरी हो चुकी थी।
कथा का भावार्थ यह कि गायत्री साधना से न केवल सन्तानहीन को इष्ट की प्राप्ति होती है, वरन् अकाल मृत्यु हो भी जाय तो उससे भी लौटाया जा सकता है। जरा, व्याधि, मृत्यु फिर किसी का भी भय गायत्री साधक को नहीं रहता। निष्ठ अश्वपति व मालती तथा पुत्री सावित्री के स्तर की चाहिए।
धाराएँ हैं, उनके उद्गम स्रोत चार वेद और पाँचवाँ यज्ञ में निहित हैं। अतः एक आद्यशक्ति गायत्री की उपासना द्वारा हम उन सभी प्रयोजनों की सिद्धि कर सकते हैं, जो अलग-अलग कार्यों के लिए भिन्न-भिन्न मंत्रों की उपासना द्वारा हस्तगत की जाती हैं। इसे गायत्री मंत्र का विशिष्ट शब्द-सामर्थ्य ही कहनी चाहिए कि एक ही मंत्र के प्रयोग द्वारा भौतिक अथवा आध्यात्मिक सभी प्रयोजन पूरे हो जाते हैं।