सनातन धर्म के कर्णधार महामना पंडित मदन मोहन मालवीय जी ने देश के उच्चकोटि के पण्डितों की एक समिति नियुक्त की थी, जिसको यह कार्य सौंपा गया कि वह शास्त्रों के आधार पर यह खोज करे कि स्त्रियों को वेद मंत्रों का अधिकार है या नहीं! कमेटी ने लम्बे समय तक भारी खोज की और 22 अगस्त, 1946 को उस समिति की रिपोर्ट के आधार पर मालवीय जी ने घोषणा की कि स्त्रियों को भी पुरुषों की ही भाँति वेद पढ़ने का अधिकार है। तब से हिन्दू विश्व विद्यालय में स्त्रियों को भी पुरुषों की भाँति वेद पढ़ाए जाते हैं।
सामर्थ्य की दृष्टि से विलक्षण है। उसमें व्यक्ति और समाज को सुसम्पन्न, सुसंस्कृत एवं समृद्ध बनाने वाले अनेक रहस्यमय तत्वों का समावेश है। विश्व का यह सबसे छोटा, सारगर्भित धर्मशास्त्र, तत्वदर्शन एवं अध्यात्म विज्ञान है। ज्ञान और विज्ञान की दोनों धाराएँ इसमें समान रूप से समाहित हैं। उपासना की दृष्टि से उसके दोनों ही प्रभाव प्रत्यक्ष देखे जा सकते हैं। साधक के स्थूल, सूक्ष्म व कारण शरीर का परिशोधन, परिष्कार कर सकने की व्यक्तिगत सामर्थ्य जितनी उसमें है, उतनी कदाचित ही किसी अन्य उपासना आधार से मिल सके। इस मंत्रोच्चारण से जुड़े शब्द प्रवाह से उद्भव सामर्थ्य अदृश्य जगत में अन्तरिक्ष में भरी विषाक्तता का निराकरण करने की अद्भुत क्षमता रखता है।
वस्तुतः साधक स्तर की उत्कृष्ट जीवनचर्या वाले माँत्रिक जब एक साथ मंत्रोच्चार करते हैं तो ऋषिकल्प महामानवों जैसी, वातावरण को आमूलचूल बदलने का सामर्थ्य विकसित होने लगता है। तपःपूत उच्चारण ही मंत्र जाप है। सदाशयता को संघबद्ध करने और एक दिशा में चल पड़ने की व्यवस्था बनाने के लिए गायत्री जप का अनुष्ठान एक आदर्श उपचार है। श्रुति ने आदेश भी दिया है-”सहस्र सा कर्मचत्” अर्थात् “हे पुरुषों! तुम सभी सहस्रों मिलकर देवार्चन करो।” वस्तुतः ऋग्वेद और सामगान की समस्त ऋचाएँ सामूहिक गान ही तो हैं।
शान्तिकुँज की युगान्तरीय चेतना ने इस वर्ष को शक्ति साधना वर्ष घोषित कर भारत व विश्व में स्थान-स्थान पर अखण्ड गायत्री जप की शृंखला चलाने का निश्चय इसी उद्देश्य से किया है। 1976-77 में साधना स्वर्ण जयन्ती वर्ष के दौरान एक विराट व्यापक अभियान चला व चौबीस लाख व्यक्तियों ने उसमें भाग लिया था। गायत्री महापुरश्चरण अभियान जो उसके बाद आरंभ हुआ, सतत् चलता रहा। नए परिजन उसमें जुड़े एवं परम पूज्य गुरुदेव की सूक्ष्मीकरण साधना की अवधि में एक समर्थ ब्रह्मास्त्र का रूप उसने ले लिया। सुनियोजित ढंग से एक करोड़ से अधिक साधकों की भागीदारी उस युग संधि महापुरश्चरण में हो रही है जो 1988 की नवरात्रि से आरंभ हुआ। उसी शृंखला में इस वर्ष के शक्ति साधना कार्यक्रम हैं। इन कार्यक्रमों में अखण्ड जप सूर्योदय से सूर्यास्त तक एक साथ दो सौ चालीस स्थानों पर चौबीस हजार व्यक्तियों द्वारा प्रतिदिन संपन्न किया जाएगा। यह क्रम प्रस्तुत नवरात्रि से आने वाले आठ माहों तक अनवरत चलता रहेगा। गायत्री जप प्रक्रिया के साथ ध्यान यह किया जाएगा कि प्रचण्ड आत्म ऊर्जा एक लक्ष्य की पूर्ति के लिए एक साथ एक बारगी उत्पन्न की जा रही है। वह संकल्प शक्ति परम पूज्य गुरुदेव की तप ऊर्जा से जुड़कर ऊपर उठती है व अंतरिक्ष की ऊँची परतों पर छतरी की तरह छा जाती है। संयुक्त आत्मशक्ति का यह छाता वातावरण व वायुमण्डल में छाई विषाक्तता को धरित्री पर बरसने नहीं देता, अपितु आसन्न विभीषिका को किसी अविज्ञात क्षेत्र में धकेलकर विपत्तियों से रक्षा करता है। इसी भावना के साथ शब्द शक्ति का यह असाधारण सामूहिक प्रयोग पूरे भारत व विश्व में चलेगा।
प्रस्तुत साधना को युग परिवर्तन हेतु अनिवार्य परिशोधन तथा युगशक्ति के प्रचण्ड उत्पादन हेतु प्रेरित एक विशिष्ट धर्मानुष्ठान मानकर सविता देवता के उदय के साथ उद्भूत प्राण ऊर्जा में अपनी आत्मशक्ति जोड़ते हुए सभी निष्ठावान परिजनों द्वारा अनिवार्य रूप से करना चाहिए। भागीदार व्यक्तियों को इससे मिलने वाले प्रतिफलों के संबंध में बताया जाना चाहिए ताकि अधिक से अधिक भावनाशील इस ब्रह्मास्त्र अनुष्ठान से जुड़ सकें। विभीषिका निवारण, अनीति उन्मूलन तथा परिस्थिति के अनुकूलन हेतु महाकाल द्वारा निर्देशित यह विशिष्ट साधना अनुष्ठान है, जिससे किसी भी आस्थावान गायत्री साधक को वंचित नहीं रहना चाहिए।