गायत्री मंजरी में महादेव शिव और जगत्माता पार्वती के वार्तालाप संबंधी बड़ा प्रेरणादायी प्रसंग आया है।
एक बार कैलाश पर्वत पर विराजमान भगवान शिव से पार्वती ने पूछा “हे योगेश्वर आपने किस साधना से इतनी सिद्धियाँ प्राप्त की हैं। सभी आपकी सर्वज्ञता को तथा महेश्वर कहकर आपकी प्रभुता को स्वीकार करते हैं। इन विशिष्टताओं की उपलब्धि किस योग साधना द्वारा हुई है, कृपया बताएँ?”
उत्तर में महादेव जी कहते है “गायत्री वेदमाता है। वही आद्यशक्ति कही जाती है। विश्व की वही जननी है। समस्त यौगिक साधनाओं का आधार गायत्री को ही माना गया है। हर प्रकार की सफलता या सिद्धि गायत्री साधना से हस्तगत की जा सकती हैं। हे परम पतिव्रता पार्वती। इस गुप्त रहस्य को जो जानेंगे और गायत्री साधना में प्रवृत्त होंगे, वे परम सिद्धि को प्राप्त करेंगे।”
यह कोश आत्मचेतना का वह गहन अन्तराल है,जिसका सीधा संबंध ब्राह्मीचेतना के साथ बनता है। विज्ञान शब्द का अर्थ है - “विशेष ज्ञान” मात्र “साइंस” नाम से यह अर्थ नहीं लिया जाना चाहिए। यहाँ विज्ञानमय कोश में अर्थ जो समझा जाता है वह असामान्य बुद्धि-ऋतम्भरा प्रज्ञा के विकास रूप में समझा जाता है। उच्चस्तरीय विभूतियों को अपने अंदर छिपाए हुए पाँचकोशों की एक महत्वपूर्ण परत है यह। विज्ञानमय कोश दो प्रयोजन पूरे करता है। पहला-अंतःकरण की चित्त तथा अहंकार परतों का अनावरण, उन्नयन व परिष्कार तथा जीवन को कल्पवृक्ष स्तर का बनाने की प्रक्रिया संपन्न करना। दूसरा-अंतः चेतना की गहरी परतों को जो अतीन्द्रिय क्षमता का भाण्डागार है,जगाना। आत्मसत्ता का असीम से संबंध जोड़ना।
वस्तुतः हमारी उच्चस्तरीय चेतन मस्तिष्कीय परतों में सूक्ष्म जगत के साथ संपर्क जोड़ने की विलक्षण क्षमता विद्यमान है। सामान्यतया यह क्षेत्र कुम्भकर्ण जैसी गहन निद्रा में पड़ा रहता है। यदि उसे जाग्रत होने का अवसर मिले तो व्यक्ति को देवोपम बनाने से लेकर चमत्कारी सिद्ध पुरुषों जैसा बनाने की सामर्थ्य उसमें है। विज्ञानमय कोश की जागरण साधना इसी दिव्य चेतन को समुन्नत बनाने की प्रक्रिया का नाम है।
प्राचीन भारतीय मनीषी-ऋषि-मुनि मानव मन के हर स्तर की सूक्ष्मतम जानकारी रखते थे। मन की इन शक्तियों को अभिव्यक्ति स्तर की सिद्धि प्रदान करने व अधिकार बनाए रखने की कला ही योग है। योग-वसिष्ठ में मन को आकाश के समान सर्वत्र स्थित कहा गया है व बताया गया है कि यदि इसकी उच्चस्तरीय सिद्धि हस्तगत हो जाय तो व्यक्ति अनन्त सामर्थ्य का धनी बन जाता है। फिर अतीत का, आगत का ज्ञान, सर्वभूत-सतज्ञान, परचित्त ज्ञान, पूर्वजन्मों का ज्ञान, भुवन ज्ञान, कायव्यूह ज्ञान, ताराव्यूह ज्ञान, तारागति ज्ञान, दूरश्रवण, दूरबोध, सर्वज्ञत्व आदि अलौकिक शक्तियाँ मानव को मिल जाती है। योगीराज अरविन्द, रामकृष्ण परमहंस, रमण महर्षि से लेकर अनेकानेक गंगा, नर्मदा, गोदावरी तट पर साधना करने वाले महापुरुषों ने गायत्री महाशक्ति के इस चौथे कोश विज्ञानमय कोश का ही अनावरण कर वह सिद्धि अर्जित की जिसका छोटा सा नमूना भक्तों द्वारा समय-समय पर देखा गया। परोक्ष की जानकारी, विचार संचार व देवात्म संपर्क आदि कितनी ही अलौकिक ऋद्धियाँ इसी केन्द्र की जाग्रति का परिणाम है। विशुद्धि या अनाहत चक्र पर ध्यान करते हुए देवात्म शक्ति के प्रवेश व सारे क्षेत्र के अग्निमय-ज्योतिर्मय होने की भावना ध्यानयोग की उच्चस्तरीय प्रक्रिया द्वारा विज्ञानमय कोश की साधना में संपन्न की जाती है। नादयोग से लेकर लययोग तथा त्राटक तक किसी को भी साधना का माध्यम बनाया जा सकता है। अंतिम लक्ष्य सब का एक ही है जीवन ब्रह्म सम्मिलन की रसानुभूति, अद्वैत का भाव तथा अंतर्चेतना का जागरण-उन्नयन।
मनोमय कोश व विज्ञानमय कोश के जागरण-अन्नमय की साधना का मार्ग हर गायत्री साधक के लिए हर समय खुला हुआ है। यदि किसी को अलौकिक-परोक्ष स्तर की सिद्धि की कामना न हो तो भी व्यक्तित्व के सर्वांगपूर्ण परिष्कार से लेकर मनोकामना सिद्धि तथा प्रतिभा संवर्धन से लेकर प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि जैसे अगणित ऐसे लाभ इससे जुड़े हुए हैं जो मानव मात्र को अभीष्ट है। यदि चक्रों को जगाकर सूक्ष्म शरीर की गहन परतों में स्थित इन कोशों को अनावृत्त किया जा सके तो व्यक्ति असाधारण श्रेय का अधिकारी बन सकता है। आध्यात्मिक लाभ जो सद्गुणों की बढ़ोत्तरी के रूप में मिलते हैं, तो स्वतः मिलने ही हैं।