आश्चर्यजनक प्रतिफल (Kahani)

October 1991

Read Scan Version
<<   |   <   | |   >   |   >>

गायत्री उपासना के लाभ असंदिग्ध है किन्तु कई बार वाँछित परिणाम में देरी होती है। वस्तुतः साधना का एक अंश पूर्वजन्मों के पाप निवारण में लग जाने से ही यह विलम्ब होता है, अतः किसी को अधीर नहीं होना चाहिए।

आयुर्वेद के प्रसिद्ध ग्रन्थ “माधवनिदान” के रचयिता माधवाचार्य ने तेरह वर्ष तक वृन्दावन में कठोर गायत्री साधना की। सफलता न मिलने पर वे काशी के मणिकर्णिका घाट चले गए व वहाँ श्मशान में रहकर साधना करने लगे। एक दिन भैरव उनकी सफल साधना से प्रसन्न होकर वर देने आए व बोले कि गायत्री उपासना के कारण उनमें इतना ब्रह्मतेज उत्पन्न हो गया है कि उसकी प्रखरता को न सहन पाने के कारण वे स्वयं सामने नहीं आ सकते। उनकी शंका का समाधान करने के लिए भैरव ने उन्हें पूर्व के चौदह जन्मों के एक भयंकर दृश्य दिखाए व कहा कि “आपकी तेरह वर्ष की साधना पिछले 13 जन्मों के पापों का शमन करने में लग गयी। दुष्कर्मों से उत्पन्न कुसंस्कार मिटने पर अब आप जो गायत्री साधना करेंगे वह फलदायी होगी। “ प्रसन्न मन लौटे माधवाचार्य ने वृन्दावन में जो उपासना की उसका आश्चर्यजनक प्रतिफल उन्हें मिला।

गायत्री को इसीलिए पापनाशक कहा गया है।

गायत्री की उच्चस्तरीय साधना-3


<<   |   <   | |   >   |   >>

Write Your Comments Here:


Page Titles