स्त्रियाँ वेदमंत्रों की द्रष्ट रही हैं। महर्षि अत्रि के वंश में उत्पन्न ब्रह्मवादिनी महाविदुषी विश्ववास ऋग्वेद के पाँचवे मण्डल के अट्ठाइसवें षटऋकों की मंत्र द्रष्ट हैं। तपस्या के बल पर वे ऋषि पद को प्राप्त हुई। तपस्विनी अपाला पतिगृह में असाध्य रोग से ग्रसित हो गयी थी। उनने तप करके इन्द्र को प्रसन्न किया और खोया हुआ स्वास्थ तथा ब्रह्मज्ञान पाया। अपाला भी ऋग्वेद के अष्टम मण्डल के 91वें सूत्र की 1 से 7 तक की ऋचाओं की द्रष्ट है। तपती की तपस्या से प्रसन्न होकर स्वयं सूर्य नारायण ने उनसे विवाह किया था। अभणऋषि की कन्या वाक् प्रसिद्ध ब्रह्मवादिनी हुई हैं। ऋग्वेद संहिता के दशम मण्डल में 124 वें देवी सूत्र के आठ मंत्रों की ऋषि यह वाक् देवी ही है। ऋग्वेद के दसवें मण्डल के 85 सूत्र की ऋचाओं की ऋषि होने का श्रेय ब्रह्मवादिनी सूर्या को प्राप्त है। अण्वडडडडडड ऋषि की धर्मपत्नी, ब्रह्मवादिनी रोमेशा ऋग्वेद के प्रथम मण्डल के 126 वें सूक्त की 7 ऋचाओं की द्रष्ट ऋषि हुई हैं।
जब उपरोक्त देवियाँ वेदमंत्रों की द्रष्ट हो सकती हैं, तो फिर उन्हें गायत्री मंत्र के लिए अनधिकारिणी घोषित करने का क्या औचित्य हो सकता है? गायत्री मंत्र नर व नारी सब के लिए है। सब उसे जप सकते हैं।
जीवन में साहस व प्रखरता के रूप में कार्यान्वित होती देखी जा सकती है।
प्राणायाम कई प्रकार के हैं पर गायत्री साधकों के लिए प्राणाकर्षण प्राणायाम, नाड़ीशोधन तथा लोम-विलोम-सूर्यवेधन प्राणायाम-ये तीन सर्वश्रेष्ठ सुगम एवं शक्तिदायी प्राणयोग उपचार हैं। गायत्री की सिद्धि को पाने के लिए हर साधक को इनका अवलम्बन लेना चाहिए।
गायत्री की उच्चस्तरीय साधना-2