महाराष्ट्र के अकीला जिले में बाबा रामभरोसे नाम के एक सन्त हुए हैं। महाराष्ट्र में गायत्री उपासना के सर्वाधिक प्रचार-प्रसार का श्रेय उन्हीं को दिया जाता है।
बाबा रामभरोसे जन्म से मुसलमान थे। नाम उनका कुतुबशाह था। एक दिन एक गाँव से दूसरे गाँव जा रहे थे तो रात्रि में मार्ग भटक जाने के कारण एक शिवालय में सो गए। रात में उन्हें एक विलक्षण स्वप्न दीखा जिसमें एक साधु वेशधारी महात्मा ने उन्हें पूर्वजन्मों की जानकारी करायी व कहा कि तुम गायत्री उपासना करो। उसी से तुम्हारा उद्धार होगा। पूर्वजन्म के संबंधी भी तुम्हें अमुक गाँव में मिलेंगे। अगले दिन रिश्तेदारी में जाने पर सब बातें सच निकली। मथुरा आकर परमपूज्य गुरुदेव से (जिन्हें उनने स्वप्न में देखा था) गायत्री मंत्र की विधिवत् दीक्षा ली और दस वर्ष तक अनवरत साधना पुरश्चरण कर माँ का साक्षात्कार किया। सैंकड़ों विधर्मियों को बाबा रामभरोसे ने गायत्री उपासना की प्रेरणा दी।
आत्म कल्याण के लक्ष्य-प्राप्ति का यही मार्ग है। गायत्री के द्वारा सविता देवता को महाप्राण का उपलब्ध करने का प्रयोजन यही है।
सविता देवता यद्यपि सूर्य का ही दूसरा नाम है, पर यह भली प्रकार समझ लेना चाहिए कि जो अन्तर शरीर और आत्मा का है, वही सूर्य और सविता का है। गायत्री महामंत्र का देवता सूर्य वही महाप्राण है, जिसका विवेचन शास्त्रों में स्थान-स्थान पर विस्तारपूर्वक किया गया है। इस प्रकार गायत्री-सावित्री एक ही सविता शक्ति की उपासना के दो भिन्न नाम हैं, इसे भली भाँति हृदयंगम कर लिया जाना चाहिए।