सिद्ध महात्मा मुकुटराम जी महाराज की गुजरात में बड़ी ख्याति है व उनका ग्रन्थ मुकुटलीलामृत गायत्री साधना में रुचि लेने वाले पढ़ते हैं। मुकुटराम का जन्म बड़ौदा में एक ब्राह्मण घर में हुआ,उन दिनों गायत्री के संबंध में शाप लगने उपासना करने पर उन्हें गायत्री मंत्र के लिए निषिद्ध कर देते थे।
मुकुटराम ने बाल्यकाल से ही कहना शुरू कर दिया था कि “पिछले जन्म में मेरा एक महापुरश्चरण अधूरा छूट गया था। उसी की पूर्ति के लिए गायत्री संबंधी भ्राँति मिटाने के लिए मैंने यह जन्म लिया है।” बाल्यकाल की बातें तो उपेक्षित रही पर उनका जप अनुष्ठान क्रम यथावत चलता रहा व किसी गुरु से दीक्षा न लेने पर व किसी स्कूल में न जाने पर भी वे अलौकिक सिद्धियों के अधिकारी बन गए। जीवन भर उनने जनसाधारण को कलियुग की संजीवनी गायत्री महामंत्र को जपने का उपदेश दिया। उनकी वचन सिद्धि गजब की थी। उनके कह देने मात्र से लोगों के संतानें हो गयी। जिसे उनने कह दिया अब तुम्हें कोई दुख नहीं होगा, सचमुच उसका सारा जीवन चैन से बीता। जिस किसी को भी जो आशीर्वाद देते थे, वह पूरा होकर रहता था। उनने हजारों व्यक्तियों को गायत्री उपासना में प्रवृत्त किया।